Sunday, July 14, 2013

चूमान


शम्भू भाइ कोपी लए कऽ सभक नाम गाम लिखैमे लागल आ एक एकटा कुटुम्ब सभ अप्पन अप्पन नाम गाम कहैत हुनका तरफ रुपैया बढ़बैत-
“रामचंद्र, गाम सुपौल, एकाबन सए एक रुपैया।”
“बद्री, पिलखबार, एगारह सए एक रुपैया।”
“नोनू, फूलपरास, एकैस सए एक रुपैया।”
“मोहन, बाबूबरही, छह हजार एक सए एक रुपैया।”

एनाहिते आन आन सभ। ई सभ देख गर्दनिमे उतरी पहिरने रामलोचनक आँखिसँ नोर बहि रहल छल आ हुनक मोन कहि रहल छल “आह ! जँ एहिमे सँ दूओ चारि गोटा इहे पाइ पन्द्रह दिन पहिने देने रहितथि तँ आइ पाइ अछैतेए भैया नहि मुइल रहितथि।

2 comments:

  1. अपनेकेँ नीक लागल, जानि मोन हर्खित भेल | प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद |

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