शम्भू भाइ कोपी लए कऽ सभक नाम गाम लिखैमे लागल आ
एक एकटा कुटुम्ब सभ अप्पन अप्पन नाम गाम कहैत हुनका तरफ रुपैया बढ़बैत-
“रामचंद्र, गाम सुपौल, एकाबन सए एक रुपैया।”
“बद्री, पिलखबार, एगारह सए एक रुपैया।”
“नोनू, फूलपरास, एकैस सए एक
रुपैया।”
“मोहन, बाबूबरही, छह हजार एक सए एक रुपैया।”
एनाहिते आन आन सभ। ई सभ देख गर्दनिमे उतरी
पहिरने रामलोचनक आँखिसँ नोर बहि रहल छल आ हुनक मोन कहि रहल छल “आह ! जँ एहिमे सँ
दूओ चारि गोटा इहे पाइ पन्द्रह दिन पहिने देने रहितथि तँ आइ पाइ अछैतेए भैया नहि
मुइल रहितथि।”
नीक कथाबनल अछि
ReplyDeleteअपनेकेँ नीक लागल, जानि मोन हर्खित भेल | प्रतिक्रिया हेतु सादर धन्यवाद |
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