Friday, July 19, 2013

अभिमान




अपसीयाँत हहाइत फूफीयाइत नम्हर नम्हर डेग दए आबि पुलिस लकअपमे बन्न अपन पतिकेँ देखि, “हे भगवती ! ई केहन दिन देखेलहुँ? ई कोना भए गेलै ?कोन अपराध कए देलिऐ ?”  
“किछु नहि, ऑफिससँ आबैत काल रस्तामे दूटा अबारा छौंरा मिल कए एकटा बच्चीयाक लाजसँ खेलैक प्रयास कए रहल छल। बहुतो मना कएला बादो नहि मानल, हाथा पाहि होबै लागल। दुनूकेँ दुनू चक्कू निकालि लेलक। ओहि हाथा पाहिमे एकटाक चक्कू दोसराक पेटमे भोका गेलै। ओ तँ भागि गेल पुलिस हमरा पकरि कए एतए बन्न कऽ देलक।”
“चाबस ! ओकरा तँ अपनेमे अपने चक्कू भोका गेलै, एकटा अवलाक लाज बचाबैत जँ अहाँक हाथसँ हत्यो भए जाइत तैयो हमरा दुख नहि होइत। हमरा एहि बातक अभिमान अछि की हम अहाँक कनियाँ छी, जिनक मोनमे नारी जातिक प्रति एतेक निष्ठा छनि।”

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