Tuesday, July 23, 2013

शुभे-शुभे

121. शुभे-शुभे

"यौ जजमान, की देखै छी ?परसू बड नीक दिन छै ।शुभे-शुभे वियाह कऽ लिअ ।अहाँक बेटी बड भागमन्त छथि ।" पण्डितक बाद सूनि जजमान हँ-नै, हँ-नै करैत बात मानि लेलकै ।खूब धूम-धामसँ वियाहक तैयारी कएल गेल ।ढोल-पिपही बजबैत बरियाती दरबज्जा लागल ।जयमालाक हुअ लागलै ।तखने...तखने कतौ जोरसँ केलकै ब्रु...म...ब्रुम ।किओ किछु सोचितै ताहिसँ पहिने लड़की खसि पड़लै ।लाल साड़ी शोणिता गेलै ।खुशीमे छोड़ल गेल गोली सीधे ओकर सींथ लऽग लागल छलै ।जजमान अवाक भेल पण्डित दिस ताकैत छलै ।शाइद पुछै छलै जे यैह शुभे-शुभे वियाह भेल आ एहने भागमन्त छलै हमर बेटी ?

अमित मिश्र

No comments:

Post a Comment