Monday, July 15, 2013

सपूत




नारायण दत्त जीक दुनू किडनी खराप भए गेल। दिल्लीक एम्समे हुनक किडनीक प्रतियारोपन कए कऽ जान बचाओल गेल। आइ ओपरेशनकेँ दू दिन बाद नारायण दत्तजीकेँ होस एलनि। आधा घंटा लेल हुनक समांग सभकेँ अनुमति भेतलनि जे हुनकासँ भेट कए सकैत अछि। एहि अबसरपर हुनक भाए-बहिन, कनियाँ, बेटा-पुतहु, पोता-पोती सभ हुनका घेरने। नारायण दत्तजी एक बेर चारू कात सभकेँ हर्खसँ देखैत लगमे बैसल अपन कनियाँकेँ धीरेसँ, “रुद्ररू नहि आएल? (रुद्ररू हुनक जेष्ठ पुत्र जिनकासँ हुनका कहियो पटरी नहि खेलकनि) एखनो ओकरा फुरसति नहि भेटलै? मरियो जइतौँ तँ आगि देबै लेल अबिते की नहि?”
“राम राम ! केहन गप्प करै छी, रुद्ररू दोसर कोठरीमे भर्ती अछि ओकरे एकटा गुरदा देलासँ तँ आइ अहाँ हमर सभक बिचमे छी। अहाँक असली सपूत तँ ओहे अछि।” हुनका मुँहपर हाथ रखैत हुनक कनियाँ बजली।

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