गरीब बापक बेटी सोनमती। अर्थक अभाबे पच्चीसम
बर्खक बएसमे ब्याह भेलनि। वर सेहो गरीबे घरक मुदा जेना तेना गरीबीसँ संघर्स करितो
पढ़ल लिखल बुझनूक। ब्याहक चारिमे दिन दुरागमन आ आइ एक महिना बाद पहिल बिदागरीपर
सोनमती वर संगे अपन गाम बुढ़ माए बाबू लग आबि रहल छली। हुनक घरसँ किछुए पहिने तीन
चारिटा आबारा छौंड़ासभ हुनका दुनूकेँ सुना कए अपनेमे, “देखही देखही सएटा मुसरी खाए
कऽ बिलाइ चलल हज करै लेल।”
दोसर, “हा हा... कतेकोकेँ देखला बाद ब्याह,
सुहागिन, पतिव्रता हा हा हा .....!”
सोनमती दुनू गोटे ओकर सभक गप्पकेँ अनसुना करैत
आगू बढ़ि गेला। किछु आगू बढ़ला बाद सोनमतीक मौलाएल मुँह देख कए अप्पन कनियाँसँ, “अहाँ
किएक चिन्ता करै छी, मुँह उपर कए कऽ कुरुर कएलासँ सुरुजकेँ थोरे परि जाइ छनि।”
“अहाँकेँ ओकरा सभक गप्पपर विश्वास अछि।”
“कनिको नहि, ओनाहितो ओ सभ
बितल गप्प अछि। अहाँक वर्तमान हमर अछि आ वर्तमानमे हमरा एतबे बुझल जे अहाँसँ बेसी
प्रेम हमरा कियोक नहि करैत अछि।”
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