दलानपर तास बजरल, हा हा ही ही होइत। पानपर पान
चलैत। तास फेकैत क०जी, “की यौ भाइ सुनलीयैए रमेशरा बेटाक नाम डॉक्टरी कॉलेजमे लिखा
गेलै।”
“हाँ, किछु बर्ख बाद ओ डॉक्टर बनि हमरा सभक इलाजो
करत।”
“केहन समय आबि गेलै.... आ एकटा हमरा सभक धिया-पुताक
कोनो गैँरे बथान नहि छै।”
हुनक दुनूक गप्प सुनैत आ
ओहिसँ पहिने अपन माएकेँ कहलापर बाबूकेँ बजबै लेल आएल क०जीक चौदह बर्खक बेटा, “अहाँ
सभ भरि दिन तासमे लागल रहू आ अप्पन अप्पन धिया-पुताकेँ कोसैत रहू, देखियौ गऽ रमेशराकेँ एखनो अप्पन खेतमे लागल छथि तँ डॉक्टर केकर बेटा बनतै रमेशराक की अहाँ सभक।”
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