Monday, July 1, 2013

चनकल ऐना

106. चनकल ऐना

विद्याधर बाबूक सातो विद्या आइ भुतिया गेल छलन्हि ।धामे-पसीने थरथराइत देह देख संगी राजा बाबू पुछलनि "की भेल ?पात जकाँ किए डोलैत छी ?"
"ड. . .ड. . .डर होइत अछि ।"विद्याधर बाबू थूक घोंटैत जबाब देलनि ।फेर राजा बाबू कने आशंकित होइत "डर !कथीक डर यौ?"
"सूनसान बाट छै तेँ भूत-प्रेतक डर ।"ई जबाब सूनि राजा बाबू ठहक्का मारलनि फेर पुछलनि "अहाँ तँ साहित्यकार छी ।समाजक ऐना छी ।भूत-प्रेतक विरोधमे लिखै छी आ एकरेसँ डेराइ छी ?"
विद्याधर बाबू बात फरिछाबैत "सत्तमे समाजक ऐना छी, मुदा ऐना सदिखन दोसरक मुँह देखबैत अछि ।अपन कखनो नै देखैत अछि ।ओनाहितो किछु लिखनाइ बड आसान छै, मुदा ओहिपर अमल केनाइ बड कठिन ।"
विद्याधर बाबूक उत्तर सूनि राजा बाबू बूझि गेलनि जे जखन ऐने चनकल अछि तँ किओ अपन मुँह किए देखत ?समाजमे सुधार किए हेतै ?

अमित मिश्र

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