Sunday, July 21, 2013

जादू

115. जादू

सभागार खचाखच भरल छल ।मंचपर जादूगर अजब-गजब खेल देखा रहल छल ।असम्भव काजकेँ सम्भव होइत देख लोक छगुन्तामे छल ।खेल खतम भेलै ।पत्रकार जादूगरकेँ पूछऽ लागलै"अहाँ बिना कोनो शुल्क लेने जादू किए देखबै छी ?टाका किए नै लैत छी ? "
जादूगर मुस्कुराइत बाजल "नै बुझलियै ।हम जादू नै देखबै छीयै ।हम तँ देखबै छीये जे जँ आँखिक सामने एते भीड़केँ एकटा अनचिन्हार द्वारा ठकल जा सकैछ तँ चिन्हार लोक कतेक ठकै हेतै !हम तँ जादूक माध्यम बना कऽ लोकक आँखिपर लागल अन्हरजाली हटेबाक प्रयास करैत छी ।"
पत्रकार सब संतुष्ठ भऽ चलि गेल ।

अमित मिश्र

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