Tuesday, July 23, 2013

क्रोध




अ० अप्पन खेतपर जल्दी जल्दी सभ काज कए कऽ आन दिनसँ दू घंटा पहिने घर दिसा आबि रहल छला किएक तँ आइ हुनक छोट भेए कोलकतासँ वकालतकेँ डिग्री लए गाम अप्पन भैया भौजीसँ आशीर्वाद लेबैक लेल आबि रहल छनि।
दौढ़ीपर जाफरीक फट्टक हटा आँगन एला, चारूकात नजरि घुमा कए देखला बादो हुनका अपन कनियाँ नहि देखेलनि। अपन कोठरीक केबार सटल देखलनि। केबार लग गेला बाद घरक भीतरसँ फुसफुसाहट सुनाइ देलकनि। कान लगा कए सुनै लगला,
“उह ऽऽऽ ! धीरेसँ बड्ड दर्द भए रहल अछि।”
“बस कनीक सहास अओर कए लिअ, तकरा बाद सभ ठीक।”
“लगैए आइ अहाँ हमर प्राणे लऽकए रहब।”
“प्राण कोना लए लेब, अहाँ तँ हमर देह प्राण सभटा छी, भगवानक बाद दोसर अहीँ तँ छी।”
भीतरक ई गप्प सुनि अ० केर हिम्मत जबाब दए गेलनि, अबाजसँ एतबा तँ बुझनाइए गेलनि जे भीतर हुनक कनियाँ आ हुनक छोट भेएक अबाज छी ओ कोलकतासँ आबि चुकल अछि। दुनूक गप्पक अर्थ लगा ओ क्रोधसँ कपैत बिना बिलैयाक सटल केबारपर जोरसँ लात मरलनि। धरामसँ दुनू पट्टा दुनू कात, सामने हुनक कनियाँ पेएर आगू कए कऽ बैसल आ हुनक छोटका भेए अपन भोजीक मोड़ेल एड़ीकेँ करूतेलसँ ससारि कए ठीक करैमे लागल।
कनीक काल पहिने अप्पन बेटा जकाँ पोसने छोट दिअरकेँ आगमनक सुनि ख़ुशीक हरबराहटमे हुनकर पेएर एंड़ीसँ मोरा गेल रहनि। 

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