Monday, July 22, 2013

हमर कनियाँ

118. हमर कनियाँ

चाहक दोकानपर तीन-चारि टा दोस्तक बीच किसिम-किसिमकेँ बहस जारी छल ।होइत-होइत अपन-अपन घरक चर्चा करऽ लागल ।तखने एकटा दोस्त बाजल "भाइ, तूँ सब जे कह मुदा हमर कनियाँ हमरा बड मानै छै ।"
ई बात सूनि एकटा मीत पूछि देलकै "से तूँ कोना बुझलहीं ?
"ओ एना जे भरि दिन हम घरपर बौआ संग बैसल रहैत छी आ कनियाँ नोकरीपर रहैत छथि ।साँझ कऽ थाकल-झमारल आबै छथि आ आबिते एकटा पचसटकही हमरा चाय-पान लेल दैत अछि ।"
एते सूनि दोस्त बाजल " रौ ओ तोरा मानै नै छौ ।ओ तँ तोरा मेहनताना दै छौ आ ठकैतो छौ ।भरि दिन काज करनिहार लेबरक दाम तँ डेढ़ सएसँ बेसिये होइ छै ।"
पहिल दोस्तक मुँह देखै बला भऽ गेल छल ।

अमित मिश्र

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