Friday, July 26, 2013

पुरखक सोभाब




“जखन अहाँ नैहर गेल रही, अहाँक घरमे रंग बिरंगक नव-नव मौगी सभ अबैत छल सम्हैर कए कियो कोनो दिन अहाँक दूल्हाकेँ उड़ा कए नहि लए जेए।”
“हा हा....., अहाँ जुनि चिन्ता करू हम्मर ओहेन नहि छथि।”  
“अहाँ नहि बुझैछीऐ ! जएकर कनियाँ एहिठाम नहि छैक तकर घरमे भला अनेरेकेँ बिना कोनो सरोकारे मौगीसभ किएक एतै आ कोनो पुरुखकेँ कम नहि बुझिऐ। कुकुरक नाँगैर आ पुरखक सोभाब कहियो सोझ नहि भए सकै छैक, जिम्हरे हरियरी देखलक उम्हरे गुरैक गेल।”

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