परदेश दिल्लीमे | नेना अपन माएसँ, “माए सभक बाबा-बाबी
ओकर संगे छथि, हमर बाबा-बाबी हमरा सभक संगे किएक नहि छथि ?”
माए, “बौआ अहाँक बाबा-बाबी अपन गाममे छथि |”
नेना, “तँ हुनका सभकेँ अतए किएक नहि लए अनै छियनि,
हमरा मोन होइए हुनका सभ संगे रहि हुनका सभ संगे खेलाइ |”
माए, “देखै छियै एतेक महगाइमे अपने गुजारा नहि
भए रहल छै हुनका सभकेँ अनबन्हि तँ हुनकर गुजारा कोना होएत |”
नेना, “ई महगाइ बड्ड खराप चीज छै ने माए ?”
माए, “हाँ बौआ |”
नेना, “ तखन तँ ई एकदिन
अहूँ सभकेँ हमरासँ दूर कए देत ?”*****
जगदानन्द झा 'मनु'
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