बीहनि कथा
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विहनि कथा आलेख
Monday, May 20, 2013
मुँह झौंसा
“गै दैया ! एतेक आँखि किएक फूलल छौ ? लगैए राति भरि पहुना सुतए नहि देलकौ |”
“छोर, मुँह झौंसा किएक नहि सुतए देत, अपने तँ ओ बिछानपर परैत मातर कुम्भकरन जकाँ सुति रहल आ हम भरि राति कोरो गनैत प्रात केलहुँ |”
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