दोसर सखी, “यौ ओझाजी ई केहन देह
बनोने छी |”
तेसर सखी, “लगैए माए दूध नहि पीएलकनि
|”
चारीम सखी, “हाँ यौ ओझाजी, माए
बिशुकि गेल रहथि की |”
पाञ्चम सखी, “नै गै हिनकर माए
दूध बेचै छलखिन |”
सभ एक्के संगे, “हा हा हा
......”
नबका ओझाजी, रातिमे व्याह भेलन्हि
आ आइ बेरुपहर कनियाँक सखीसभ चारू कातसँ घेर कए हँसी ठिठोली करति | ओझाजी बौक जकाँ
सबटा सुनैत |
एकटा सखी फेरसँ, “लगैए हिनकर
माए बजहो नहि सिखेलखिन |”
ओझाजी कनीक मुँह उठा कए, “आब
एतेक रास मौसी लग कोना बाजू |”
सभ सखी एक्के संगे, “मौसी !
मौसी कोना |”
ओझाजी, “अहाँ सभकेँ हमर माएक सभ
गप्प बुझल अछि अर्थात हमर माएक संगी सभ छी तेँ एहि हिसाबे अपने सभ भेलहुँ ने हमर
मौसी |”
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