एकटा साठि-बासठि बर्खक दाइ
पोखरिसँ लोटामे अछिन्जल भरि जेना ने मोहारसँ बाहर निकलि मन्दिर दिस बढ़ली की
तखने एकटा ७-८ बर्खक माति कादोमे सनल नेना आबि दाइ केर नुआ पकरि, “दाइ बड्ड भूख
लागल अछि किछु खाए लेल दे ने |”
दाइ सिनेहसँ नेनाक माथपर दुलार
करैत, “आहा, नेन्नाकेँ
भूख लागल अछि चलू एखने दै छी |”
ई कहैत दाइ नेनाकेँ मन्दिरक
असोरापर लए जा कए अपन झोरासँ चुरा चीनी निकालि आ दुकानसँ १०० ग्राम दही किन ओहि
नेनाकेँ सिनेहसँ खुएलनि | खेला बाद तृप्त भए ओ नेना फूड़सँ
हँसैत भागि गेल |
दाइ फेरसँ पूजा करैक हेतु
पोखरिसँ जल भरि मन्दिरमे आबिए रहल छलीह कि एकता दोसर दाइ जे की हुनका ओहि नेनाकेँ
कनीक पहिने खुआबैत देखने रहथि, “ई कि बहिन, बटूक खुएला
बाद पूजा |”
“बटूक ! नहि
बहिन, ओ तँ ओनाहिते ओहि नेनाकेँ भूख
लागल छलै आ घरसँ हम अपन जलखैकेँ लेल चुरा चीनी अनने रहि से ओहि नेनाकेँ खुआ देलिऐ
आब पूजा करै लेल जा रहल छी |”
हुनक दुनू केर ई गप्प सुनि आ
देख कए एकटा मन्दिरक पण्डा, “माए आब तुँ की पूजा करबअ, तोहर पूजा तँ
भए गेलह, तुँ जाहि नेनाकेँ भोजन करेलह ओ
कियोक आर नहि स्वम जगदीश्वर नेनाक भेसमे छलथि | तोहर भक्ति आ
भगवानक लीला दुनूकेँ शत-शत प्रणाम |”
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जगदानन्द झा ‘मनु’
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