“ई केहन भेष बनोने छेँ, भगवान एहन सुन्नर रूप रंग देने छ्थुन एकरा बना सुना कए
राख |”
‘की दी, केकरा लेल रंग रूप आ केकरा लेल श्रृंगार | सुनने नै छी पिया मोर आन्हर
करू श्रृंगार केकरा लेल आ हमर पिया तँ आँखि रहितो एको बेर मूंह उठा हमरा दिस देखतो
नहि छथि |’
“धूर पगली एहिसँ तँ आओर दुरी बढ़तौ | सुन, पुरुखक मोनमे बसै केर दूएटा रस्ता
छैक | पेटसँ आ बिछानसँ |”
‘मने |’
“मने की | पेटसँ मने एहन नीक नीकूत बना कए हुनका खुआबहुन जे पशीन होइन | भोजनक
प्रशंशा संगे तोहर प्रशंशा आ जखने प्रशंशा तहने हुनक मोनक भितर | आ बिछानसँ मने,
बिछानपर जएसँ पहिने एतेक सजि धजि कए जो जे हुनका देखैत मातर हुनक आँखिक रस्ते हुनक
करेजामे घुसि जो आ एकबेर ई अबसर भेटलाबाद स्वर्गक भोग करा दिओन तहन देखू कोना नै
तुँ हुनक मोनमे आ ओ तोहर चारूकात चक्कर लगाबैत, हा हा हा - - ”
‘धत्त
दी अहूँ |’
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