चुनाब
प्रचारक सभा | जनसमूहक भीर उमरल | नेताजी अपन दुनू हाथकेँ भँजैत माइकमे चिकैर-चिकैर
कए भाषण दैत, “आदरणीय भाइ-बहिन आ समस्त काका काकीकेँ प्रणाम, एहि बेर पुनः अपन धरतीक
एहि (अपन छाती दिस इशारा कए) लालकेँ भोट दए कऽ जीता दिअ फेर देखू चमत्कार | कोना
नै सभक घरमे दुनू साँझ चूल्हा जरऽत | कोना कियो अस्पताल आ डॉक्टरक अभाबमे मरत | हमर
दाबा अछि आबै बला पाँच बर्खमे एहि परोपट्टाक गली गलीमे पक्का पीच होएत | युवाकेँ
रोजगार भेटत | बुढ़, बिधवा आर्थिक रूपसँ कमजोर वर्गक लोककेँ राजक तरफसँ पेंशन भेटत
| भुखमरीक नामो निशान नहि रहत | बस ! एक बेर अपन एहि सेबककेँ जीता दिअ |”
थोपरीक
गरगराहटसँ पंडाल हिलए लागल | नेताजी जिन्दाबादक नारासँ एक किलोमीटर दूर धरि हल्ला
होबए लागल | भीरमे सँ निकलि एकटा बुढ़ मंचपर आबि, “एहि सभामे उपस्थित सभ गण्यमान आ
आदरणीय, नेताजी एकदम ठीक कहैत छथि |”
ततबामे
नेताजीक चाटुकार सभ, “वाह–वाह, बाबा केर स्वागत करू |” पाछूसँ दू तीनटा कार्यकर्ता
आबि बाबाकेँ मालासँ तोपि देलकनि | बाबा अपन गरदैनसँ माला निकालि कए, “नेताजी एकदम
ठीक कहैत छथि | एतेक रास असमान्य कार्य हिनकर अलाबा दोसर कियो कैए नहि सकैत अछि |
जे काज ६६ बर्खमे नहि भेल ओ मात्र पाँच बर्खमे भए जाएत किएक की ओ जदुक छड़ी मात्र
हिनके लग छनि जे एखने एहि सभामे अबैसँ पहिले भेतलन्हिए |”
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जगदानन्द झा ‘मनु’