Thursday, May 23, 2013

मोनमे बसै केर रस्ता



“ई केहन भेष बनोने छेँ, भगवान एहन सुन्नर रूप रंग देने छ्थुन एकरा बना सुना कए राख |”
‘की दी, केकरा लेल रंग रूप आ केकरा लेल श्रृंगार | सुनने नै छी पिया मोर आन्हर करू श्रृंगार केकरा लेल आ हमर पिया तँ आँखि रहितो एको बेर मूंह उठा हमरा दिस देखतो नहि छथि |’
“धूर पगली एहिसँ तँ आओर दुरी बढ़तौ | सुन, पुरुखक मोनमे बसै केर दूएटा रस्ता छैक | पेटसँ आ बिछानसँ |”
‘मने |’
“मने की | पेटसँ मने एहन नीक नीकूत बना कए हुनका खुआबहुन जे पशीन होइन | भोजनक प्रशंशा संगे तोहर प्रशंशा आ जखने प्रशंशा तहने हुनक मोनक भितर | आ बिछानसँ मने, बिछानपर जएसँ पहिने एतेक सजि धजि कए जो जे हुनका देखैत मातर हुनक आँखिक रस्ते हुनक करेजामे घुसि जो आ एकबेर ई अबसर भेटलाबाद स्वर्गक भोग करा दिओन तहन देखू कोन नै तुँ हुनक मोनमे आ ओ तोहर चारूकात चक्कर लगाबैत, हा हा हा - - ”
‘धत्त दी अहूँ |’

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