Monday, September 10, 2012

गुहारि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कमला कातक नवटोलीक गहबर बड़ जगताजोर। सएह सुनि‍ अपनो गुहारि‍ करबैक वि‍चार भेल। भाँज लगेलौं तँ पता चलल जे तीनू वेरागन-सोम, बुध आ शुक्र- भगता भाउ खेलाइ छथि‍ मुदा शुक्र दि‍नकेँ तँ साक्षात् भगवति‍येक आवाहन रहै छन्‍हि‍। मन थि‍र भेल। डाली लगबए पड़ै छै तँए ओरि‍यौनक वि‍चार भेल। मन भेल जे पत्नीकेँ डाली ओरयौनक भार दि‍यनि‍। मुदा बोलकेँ रोकि‍ वि‍चार कहलक- देवालयक काज छी, एकोरत्ती कुभाँज भेने गुहारि‍यो उनटे हएत। डालीक बौस बाजरसँ कीनए पड़त। मुदा सस्‍ता दुआरे जनि‍जाति‍ उनटा-पुनटा बौस कीन लेतीह।
मन उनटि‍ गेल। अपने हाथे कि‍नैक ि‍नर्णए केलौं।

बाजार पहुँच फूल काढ़ल सीकीक रँगर डालीक संग बेसि‍ये दाम दऽ दऽ नीक-नीक बौस कीनलौं। मन पड़ल जे भरि‍ दि‍न उपास करए पड़त। चाहो तक नै पीब सकै छी। जँ पीबैओक मन हएत तँ गोसाँइ उगैसँ पहि‍ने भलहि‍ं पीब लेब।
तनावसँ भरि‍ दि‍न मन उदग्‍नि‍ रहैए। ने काज करैक मन होइए आ ने कि‍यो सोहाइए। एहेन तनाव दुि‍नयाँमे ककरो भरि‍सके हेतै।
कोन जालमे पड़ि‍ गेल छी। तहूमे एकटा रहए तब ने। जालक-जाल लागल अछि‍। जमीन-जत्‍थाक जाल, जन-जाल, मन-जाल, तन-जाल, शब्‍द-जाल, अर्थ-जाल, वि‍चार-जाल, वाक्-जाल नै जानि‍ कते जाल बनौनि‍हार कते जाल बना कऽ पसारि‍ देने अछि‍। एक तँ ओहि‍ना इचना माछ जकाँ लटपटाएल छी तइपरसँ जालक-जाल। गैंचीक नजरि तँ‍ नै जे ससरि‍-फसरि‍ छछारी कटैत जान बचा सोलहन्नी जि‍नगी पाबि‍ लेब। तँए नवटोलीक गहबरमे डाली लगेलौं।

गुहरि‍याक कमी नै। अकलबेरेसँ गुहरि‍या पहुँच पति‍यानी लगा बैस गेल। गहबरक भीतर भगत बैस धि‍यान मग्‍न भऽ गेलाह। गहबरसँ उदेलि‍त भाव भगतक हृदैकेँ कम्‍पि‍त करैत। गुहारि‍ करए बाहर नि‍कलल। हाथमे जगरनथि‍या बेंतक छड़ी लेने। भगत गुहारि‍ शुरू करैत कहलखि‍न- भगत-अश्रमसँ श्रमक बाट पकड़ि‍ चलि‍ जाउ। आगू कि‍छु ने हएत।
भगतक पछाति‍ डलि‍वाह कहथि‍न- पाछु घुि‍र नै ताकब। कतबो जोगि‍न सभ कानि‍-कानि‍ कि‍अए ने बजए मुदा घुरि‍ नै ताकब।

हमरो नम्‍बर लगि‍चएल। मुदा एक्के वाक् सुनि‍ उत्‍सुकता ओते नहि‍ये रहए जते नव वाक् सुनैक होइत। अनेरे मनमे तुलसीक वि‍चार उठि‍ गेल। कहने छथि‍ जे जेकरा जंजाल रहै छै तेकरा ने चि‍न्‍ता होइ छै। जकरा नै छै?
तही बीच भगत सोझमे आबि‍ गेलाह। पैछले बातकेँ दोहरबैत एकटा नव बात पुछलनि‍- छुटि‍ गेल कि‍ने?”
बि‍नु तारतमे बजा गेल- हँ।

वि‍दा भेलौं। बाटमे वि‍चारए लगलौं जे अश्रमक अर्थ कि‍ होइ छै। मुदा कोनो अर्थे ने लागल। हारि‍ कऽ ऐ नि‍ष्‍कर्षपर एलौं जे एक सोगे आएल छलौं दोसर लेने जाइ छी।

गाम अबि‍ते टोल-पड़ोसक लोक भेँट करए आबए लगलाह। सभ एक्के बात पुछथि‍- की भेल?”
कि‍छु गोटेकेँ प्रश्ने बना कहलि‍यनि‍- अश्रमक अर्थे ने बुझलौं। अहीं कहू। मुदा जते मुँह तते रँगक उत्तर भेटऽ लगल। सुनैत-सनैत मन घोर-मट्ठा भऽ गेल। पछाति‍ जे कि‍यो पूछथि‍ तँ कहए लगलि‍यनि‍- जहि‍ना छलौं तहि‍ना छी।-2
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