बजैत लाज होइए मुदा नहियो
बाजब तँ पुरुख कथीक। जहिना सभकेँ होइ छै तहिना जूति-भाँति लए पत्नीसँ
मुँहाँठुट्ठी भऽ गेल दुनू दू दिशाक बुझनूक! खिसिया कऽ अपने काज करए खेत चलि
गेलौं। जलखै नै पहुँचल। सबूर केलौं। मुदा खीस आरो तबैध गेल। अबेर धरि खेतेमे खटैत
रहलौं।
गामपर आबि नहा-सोना खाइले
गेलौं। ओढ़ना ओढ़ि पत्नी घरमे सुतल। तामसे नै टोकलियनि। मुदा तैयो अनठा कऽ बच्चाकेँ
पुछलिऐ- “बुच्ची, माए कतए छथुन?”
कहलक- “मन खराप छै सुतल अछि।”
“तोरा बुत्ते खाएक परसल
हेतह?”
कहलक- “भानसो
कहाँ भेलहेँ।”
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