चोरिक बाढ़ि एने गामे-गाम
चोर सोहरि गेल। जहिना घोरन लुधैक जाइत तहिना चोरो लुधकए लगल। सेहो एकरंगा नै, सतरंगा! पाँखिसँ बिनु पॉखिबला घोरने जकाँ घुड़छा-घुड़छे!
जेकर बहुमत तेकर राज-पाट! शासक-सँ-सिपाही धरि।
अगहन मास। गामक अधासँ उपर
उपजल धानक खेतमे १४४ लगि गेल। कोनो बटेदारीक चलैत तँ कोनो फटेदारीक। सरकारियो
काज तँ सरकारिये छी। एक घंटाक काज मासो दिनमे हएत तेकर कोनो गारंटी नै। तखैन १४४
मे जप्त भेल खेत ४४ दिनक बदला ४४ मासो रहि सकैए।
ओस पला गेल। दिन खिआ कऽ
पानि भऽ गेल। दिन-राति शीतलहरिमे डूमि गेल। दर्जनो भरि सिपाही गामक ओगरबाहि
करैत। अपना जिनगी दिस तकलक तँ बूझि पड़लै जे जान बँचब कठिन अछि।
एक बाजल- “खस्सी मासु खेबा जोगर
समए अछि।”
दोसर बाजल- “जँ बनबैले तैयार होय
तँ खस्सी आनि देब।”
सएह भेल। दूटा सिपाही विदा
भेल। हाथमे हथियारो आ देहमे बर्दियो रहबे करै। दिनके देखल खस्सियो आ घरो
छेलैहे। अपने जकाँ एक गोटे मुँह दबलक दोसर उठा कऽ लऽ अनलक।
बना-शोना सभ भरि मन खेलक।
मुदा दोसरे दिनसँ दुनू गोटेकेँ आन-आन सिपाही चोरबा कहए लगल।
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