Monday, September 10, 2012

भरमे-सरम :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




बच्चामे बाबू कतबो पढ़बैक परयास केलनि‍ मुदा हम नहि‍ये पढ़लयनि‍। अपनेसँ जे कनैठी दऽ नाम-गाम सि‍खा देलनि‍ ओ अखनो कानेपर रखने छी।

पचासम बर्ख चलि‍ रहल अछि‍। परुसाल शि‍क्षामि‍त्रक उजैहि‍या उठलै। चौक-चौराहा, हाट-बजार, गल्ली-कुच्ची सगतरि‍ एक्के हवा बहए लगलै। जहि‍ना हवा पीब अधमरुओ साँप फनफना उठैत तहि‍ना मनमे उठल। उठि‍ते गर अटबए लगलौं। एहेन बहैत गंगामे स्नान नै कऽ लेब तँ सभ दि‍न पापि‍ये रहि‍ जाएब। दरबज्जापर बैसल वि‍चारि‍ते रही आकि‍ सुन्दार भायकेँ धड़फड़ाएल अबैत देखलयनि‍। हुनका देखि‍ते अपन चिंता पड़ा गेल। दया उमड़ि‍ गेल। बेचारे एक्को कौड़ीक आदमी नै रहलाह। आचार्यक उपाधि‍ लैयो कऽ गोबर-माटि‍ भेल पड़ल छथि‍। नोकरी नै भेलनि‍। लग अबि‍ते पुछलि‍यनि‍-
 भाय, के‍म्हर-के‍म्हर?”
चौवनि‍या मुस्की दैत बहलाह-
बेतरनी पार होइक लग्न आबि‍ रहल अछि‍। जे गति‍ डारि‍ चुकल बानरक होइ छै वएह गति‍ अवसर चुकल मनुखोकेँ होइ छै। तँए गंगामे हाथ धोइ लि‍अ।
धारक मोइन जकाँ वि‍चार चकभौर लेलक। पुछलि‍यनि‍-
से की?”
कहलनि‍-अगि‍ला साल तत्ते शि‍क्षा मि‍त्रक बहाली हएत जे एक्कोटा पढ़ल-लि‍खल नै बॅचत।
असमंजसमे कहलि‍यनि‍-
 
भाय, हमरा तँ नामे-गामटा लि‍खल होइए।
ठाहाका मारि‍ कहलनि‍- 
डेर-दू हजार खर्च करू तेहेन सर्टिफि‍केट आनि‍ कऽ देब जे पहि‍लके बहालीमे भऽ जाएत।
रूपैया दऽ देलि‍यनि‍ साटिफि‍केट सेहो देलनि‍। भैकेन्सी भेल। 

बेटो बी.ए.पास केने अछि‍। दुनू बापुत एक्के स्कूलमे दरखास दइक वि‍चार केलौं। कागजक जखन मि‍लानी केलौं तँ बेटाक उमेरसँ दू बरख कम अपन उमेर! मुदा एहेन अजोध बात बजबो कतए करब। भरमे-सरम चुप्पे रहि‍ गेलौं।
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