Monday, September 10, 2012

चोर-सि‍पाही :: राम वि‍लास साहु



माघ मास अन्‍हरि‍या राति‍। ओस-कुहेससँ हाथो-हाथ ने सुझैत। एकटा चोर चारि‍ कऽ भागल जाइ छल। तखने एकटा सि‍पाही गस्‍तीमे आबि‍ रहल छल। चोर सि‍पाहीकेँ देखि‍ते भागल। चोर बूढ़ छल मुदा सि‍पाही बलंठ छलै। भागैत चोरकेँ रपटि‍ कऽ पकड़लक सि‍पाही। पकड़ि‍ हाजति‍ लेने जाइ छल।

चोरकेँ डंढ़ासँ देह थरथराइ छल। मने-मन ईहो सोचै छल जे केना ऐ यमराजक हाथसँ बचब। थोड़े आगू चलि‍ कऽ देखल जे सड़कसँ हटि‍ एकटा घूर रहै। आगि‍ देखि‍ते चोर बाजल-
सर, अहाँ एत्तै रहू आ हम ओइ धूरासँ कनी बि‍ड़ी नेसने अबै छी?”
सि‍पाही कने सोचि‍ कऽ बाजल-

अरे, तूँ हमरा मूर्ख बुझै छेँ रे! आ जे तूँ भागि‍ जेमे तँ हम तोरा पतालमे खोजबौ? चूपचाप एतए बैस हम अपनेसँ बीड़ी सुनगेने अबै छी।

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