Monday, September 10, 2012

देखल दि‍न :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मृत्‍युसँ छह मास पूर्व मुनेसर काकाकेँ बेटा लग मन उबि‍एलनि‍ तँ असगरे दि‍ल्‍लीसँ गाम वि‍दा भेलाह। परि‍वारसँ समाज धरि‍ सभकेँ अचरज लगलनि‍ जे मनमे कि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍ जे असगरे एते साहस केलनि‍। असगरे वि‍दा होइक कारण भेलनि‍ जे बेटाकेँ पाँच दि‍न समए नै, एक तँ ओहुना बैंकमे कम छुट्टी होइ छै तइपर अपनो कारोवार ठाढ़ केने छथि‍। पुतोहु सहजे पुतोहुए छन्‍हि‍, भरि‍ दि‍न एयर-कंडीशनमे बैसि देख-वि‍देशक खेल देखब आ साज-श्रृंगार छोड़ि‍ दुनि‍याँमे कि‍छु देखब ने करै छथि‍। मुदा मुनेसर काकाक सहासक कारण ईहो भेलनि‍ जे एकेटा गाड़ी ि‍दल्‍लीसँ सकरी पहुँचा देतनि‍। सकरी तँ ओहुना घरे-अंगना भेलनि‍।
गाम अबि‍ते मुनेसर काका देखलनि‍ जे घर-अंगना तँ खंडहर भऽ गेल, कतए रहब। अंडी-बगहंडी, भाँग-धथुरसँ भरल अछि‍। जखने बोनाह भेल तखने साँप-छुछुनरि‍क संग बि‍ढ़नी-पचैहि‍या हेबे करत। बाप-पुरुखाक डीहक दशा देखि‍ दुख भेलनि‍ जे जखन घरे नै तखन मनुख केना रहत। जखन मनुक्‍खे नै रहत तँ बाप-पुरूखाकेँ के चि‍न्‍हत। मने-मन वि‍चार ऊपर-नि‍च्‍चा होइते रहनि‍ कि‍ एक गोरेकेँ रस्‍ता धेने जाइत देखलनि‍। ओना दस साल पहि‍ने देखनहि‍ रहथि‍ मुदा मनुष्‍योक बुनाबटि‍ तँ अजीव अछि‍। जहि‍ना बीस बर्खक अवस्‍था धरि‍ बाढ़ि‍क आगमन रहैत अछि‍ तहि‍ना साठि‍ बर्खक पछाति‍ रौदि‍याहक।

दुनू सएह तँए पुछैक जरूरत दुनूकेँ भेलनि‍। कमलेशकेँ ऐ लेल पुछैक जरूरत भेलै जे आन-गामक जँ रहि‍तथि‍ तँ रस्‍ते-रस्‍ते एला, चलि‍ जइतथि‍। ठाढ़ भऽ नि‍हारि‍ कि‍अए रहला अछि‍। जखन कि‍ मुनेसर काकाकेँ जरूरी भेलनि‍ जे जखन पुस्‍तैनी गाम एलौं, परि‍वार चलि‍ गेल तँ चलि‍ गेल, समाजो अछि‍ कि‍ ओहो मेटा गेल। मोवाइल जकाँ नै भेल जे अगुआ कऽ कि‍अए फोन करब। पाइ चरचा होइ छै कि‍ नै। ओइ सम्‍प्रदाय सदृश्‍य अछि‍ कि‍ नै जे अगुआ कऽ जेकर नजरि‍ पड़त ओ पहि‍ने अभि‍वादन करत। मुदा भेल दोसरे, जहि‍ना पनचैतीमे एक संग अनेको बजनि‍हार बाजए लगैत वा मोवाइलेपर दुनू दि‍ससँ दुनू परानी बाजए लगैत, तहि‍ना मुनेसरो काका आ कमलेशो एके बेर दुनू दि‍ससँ बाजल। आग्रह करैत कमलेश अपना ऐठाम तीन दि‍नक अभ्‍यागतीमे लऽ गेलनि‍।
गाम-समाजक कुशल-समाचारक संग मुनेसर काकाक मनक जड़ि‍मे अपन परि‍वार नचए लगलनि‍। कोन धरानी बाबू, एकटा साधारण पोस्‍ट मास्‍टर रहि‍ तीस बीघा खेत बनौलनि‍। दस गाम बीच एकटा पोस्‍ट आफि‍स मनि‍आडरक रूपैया अगुआ-पछुआ, संग-संग जि‍नकर रूपैया दि‍अ जाथ दू-चारि‍ आना ओहो देबे करनि‍। आमदनी बढ़ने मुनेसरोकेँ पढ़ा-लि‍खा हाकि‍म बनौलनि‍। तेसर पीढ़ी चलि‍ रहल छन्‍हि‍। डंडी तराजू जकाँ परि‍वारकेँ तौल रहला अछि‍ जे एक पीढ़ी (पि‍ता) समाजमे की‍ सभ केलनि‍। बीचक की भेल आ आइ उजड़ि‍-उपटि‍ गेल। जहि‍ना  चढ़ैत जुआनी जि‍नगी हेरा जाइ छै तहि‍ना ने अबैत मृत्‍युकेँ रोग-भागक सेहो भेटए लगै छै।
कमलेशक घर देखि‍ मुनेसर काका चीन्‍ह गेलखि‍न जे ई तँ संगीऐक घर छी। पुछलखि‍न-
बाउ, परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
कमलेश बजलाह-
तीन पीढ़ीक सभ छथि‍।
मुनेसर काकाकेँ आगू बकार नै फुटलनि‍। जहि‍ना तकि‍तो आँखि‍मे ज्‍योति‍ नै रहै छै तहि‍ना भेलनि‍।   

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