Monday, September 10, 2012

अप्‍पन हारि :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




मनकेँ कतबो अपना दि‍ससँ बहटारए चाहै छी तैयो कुकुड़ जकाँ दुआर-दरबज्‍जा छोड़बे ने करैए। छोड़बो केना करत? कोनो कि‍ आइयेक संगी छी आकि‍ जहि‍ये पशु-पक्षी दि‍स तकलौं तहि‍येसँ ने ओहो संग लगि‍ परि‍वारमे सटि‍ गेल।

अपन दुरागमन भेल। आने सभ जकाँ अपनो बूझि‍ पड़ए लगल जे सौंसे दुनि‍याँ दुलहनि‍येसँ भरल अछि‍। तहि‍ना पत्नि‍योक आँखि‍ हमरा छोड़ि‍ कि‍छु देखबे ने करनि‍। थोपड़ी की कोनो एक्के हाथे बजैए। ओइले तँ दुनू हाथ चाही। से भेबो कएल। बूझि‍ पड़ए जे सौंसे दुनि‍याँ फूसि‍ आ दुइये प्राणी सत्‍ छी। एहन स्‍थि‍ति‍मे मेल-मि‍लानक कथे की। कान्‍हीसँ वि‍चार धड़ि‍क।

जहि‍ना दुनू कसमकस पार्टीक बीच फैसला उचि‍त होइत तहि‍ना भगवान नि‍साफो केलनि‍। तइसँ फलो नीक भेटैत। जौआँ बेटा भेल। जँ दुनू दू रहैत तँ बेइमानि‍यो होइतै से एक्के रहए। खुशी तँ दुनू प्राणीकेँ भेल मुदा दू दि‍शामे। अपना मनमे हुअए जे हे भगवान दसो साल जँ एहेन उपजा देलह तँ गाममे बीस भऽ जाएब। तरे-तर माघक खेसारी जकाँ मन गदगदाएल। मुदा पार्टनरक वि‍चार दोसरे रहनि‍। एकहरी बच्‍चाक होन्हहारी-दर्द दोहराएल रहनि‍ तँए पाण्‍डु रोग जकाँ पीड़ी पकड़ने।

चारि‍-पाँच मासक पछाति‍ फेर दुनि‍याँ ि‍दस दुनू पार्टनर तकलौं। मुदा वि‍चारमे खट-पट हुअए लगल। खट-पट एते बढ़ि‍ गेल जे एक-एक बेटा बाँटि‍ दुनू दू दि‍स भऽ गेलौं।

तीन बर्ख भऽ रहल अछि‍। पत्नि‍क हि‍स्‍सा बच्‍चा फूल सन लहलह करैए। वएह अपन दहि‍ना हाथक चटकन दि‍न-राति‍ खाइए। कोन दुर्मति‍या कपारपर चढ़ि‍ गेल जे औझका थापर एहेन लागि‍ गेलै जे मुँहेँ भरे माटि‍पर खसल।

अपन कोखि‍क कनैत बच्‍चाकेँ देख पत्नी गड़ि‍यबैत बजलीह-पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
सुनि‍ क्रोध नै उठल। जना मनक सभ ताप-संताप मेटा गेल हुअए। लजाएल आँखि‍, आँखि‍पर देलि‍यनि‍ तँ बूझि‍ पड़ल जे झपटि‍ लेतीह। मुदा जहि‍ना रौद पानि‍मे आ पानि‍ रौदमे सटि‍ नव जीवन धड़ैत तहि‍ना आब अपनो वि‍चारै छी।
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