Monday, September 10, 2012

मुसाइ पंडि‍त :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मुसाइ पंडि‍त

गाममे वि‍ख्‍यात मुसाइ पंडि‍त छथि‍। ओहन पंडि‍त जि‍नकर बात मुसाइये पंडि‍तक नाओंसँ वि‍ख्‍यात अछि‍।

मध्‍यम् जाति‍क मुसाइ पंडि‍त, माइक कोरपच्‍छु बेटा भेने, दौजी फड़ जकाँ तीन सालमे माए आ सात सालमे पि‍ताक श्राद्ध केलनि‍। मुदा बाल-वि‍वाहक शुभ फल भेटि‍ गेल रहनि‍। पि‍ताक श्राद्धसँ तीन मास पहि‍ने बि‍आह भऽ गेलनि‍। जँ कहीं तीन मास पछुऐतथि‍ तँ सि‍मरि‍या गाड़ी जकाँ मास नै कऽ पबि‍तथि‍, मुदा भाग्‍य तँ भाग्‍य छी, से मुसाइ पंडि‍तकेँ सुतरलनि‍। जेकरा माए-बाप रहै छै तेकरा तँ पोथी-पतरा काज दइते छैक जे बि‍नु-भाइयो-बापबलाकेँ सुतरल। मुसाइ पंडि‍त पि‍ताक श्राद्धक तीन दि‍न पछाति‍ ससुरकेँ अरि‍आतए काल पुछलनि‍-
बाबू, आब तँ यएह सभ ने माता-पि‍ता भेला, हमरा कि‍ हएत? भाय-भौजाइक हालत अपनो गाममे देखि‍ते हेथि‍न।
जमाइक प्रश्न सुनि‍ कमलाकान्‍त गुम्‍म भऽ गेलाह। मने-मन वि‍चारए लगलाह जे बेटी-जमाइक भार उठाएब भारी होइ छै। फेर मन घुमलनि‍ जे भगि‍नमान तँ कुलश्रेष्‍ठ होइए। मुदा लगले मन बदलि‍ गेेलनि‍। घी-जमाए भगि‍ना, जहि‍ना घरमे सि‍दहामे नै रहने भूखक लहरि‍ जोर पकड़ै छै तहि‍ना आगूक जि‍नगी मुसाइकेँ जोर मारलक। दोहरबैत बाजल-
बाबू, कि‍छु बजलखि‍न नै?”
कमलाकान्‍तक मन फेर बहटलनि‍। पत्नीसँ पूछि‍ लेब जरूरी अछि‍, मुदा से खोलि‍ कऽ केना समधि‍यौरमे जमाए लग बाजब। बेटोकेँ तँ पूछि‍ लेब अछि‍। मुदा पुतोहु बेरमे पुछबे ने केलौं आ बेटी-जमाए बेरमे कि‍अए पुछबै। मन बनि‍ते बजलाह-
दुनू भाय-भौजाइकेँ बजबि‍औ। आखि‍र माता-पि‍ताक परोछ भेने तँ वएह सब ने माता-पि‍ता भेलाह।
मुसाइ दुनू भाँइकेँ पुछलक। एक तँ ओहना लोकक घराड़ी घटल जाइ छै तइपर जँ बढ़ि‍ जाए, ई के नै चाहत। दुनू भाँइयो आ भौजाइओ मुसाइकेँ सासुर जाइक आदेश दऽ देलक। गाए-नेरूक मि‍लान तँ ठेहुने-पानि‍ दुहान।
कमलाकान्‍त संगे चलए कहि‍ पुछलखि‍न-
कपड़ो-लत्ता लेब।
मुसाइ- हँ, हँ, जते सरधुआ कपड़ा अछि‍ ओ जँ नै लऽ लेब तँ ऐठाम मूसे-दि‍वार खा जाएत।

एक तँ ओहि‍ना मुसाइ सहलोल, तइपर सासुरक वि‍द्यालय पहुँचि‍ गेल। सासुरँ जँ सारि‍-सरहोजि‍सँ गलथोथरि‍मे हाि‍र जाएब तँ कोन डोराडोरि‍बला भेलौं। जहि‍ना वि‍षुवत रेखाक समान दूरीपर दुनू दि‍शा समान मैसम होइत तहि‍ना अन्‍हार-इजोतक बीच सेहो होइत अछि‍।

पच्‍चीस बर्खक अवस्‍थामे मुसाइ सासुरसँ मुसाइ पंडि‍त भऽ दूटा धि‍या-पुता नेने गाम आबि‍ गेलाह। जहि‍ना फुटलो खपटाक जरूरति‍ समए पाब होइ छै तहि‍ना मुसाइ पंडि‍तक जरूरति‍ गाममे आइ भेल।
मौसमी बेमारीक जानकारी दि‍अ गाममे बहरबैया सभ औताह जखने सँ मुसाइ पंडि‍त सुनलक तखनेसँ मटि‍या तेल देलहा कुत्ता जकाँ मनमे उड़ी-बीड़ी लगि‍ गेलनि‍।

जहि‍ना समए ि‍नर्धारि‍त छल तहि‍ना कार्यक्रम शुरू भेल। अभ्‍यागती सुआगत सभकेँ भेलनि‍। बारहो मासक मौसमी बेमारी आ ओइसँ पथ-परहेजक नीक जानकारी देलखि‍न। गाममे नव फल भेटल। बीचमे बैसल मुसाइ पंडि‍त सुनैपर कम धि‍यान देने रहए। संगसोरमे जहि‍ना लोक हरेलहो जगहपर गपे-गपमे पहुँचि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना मुसाइ पंडि‍त सेहो पहुँचि‍ गेलाह। हड़लनि‍ ने फुड़लनि‍ उठि‍ कऽ बीचमे ठाढ़ भऽ गेला। ठाढ़ होइते बैसि‍नि‍हारक आँखि‍ पड़ै लगलनि‍। दुनू हाथसँ शान्‍ति‍ बना रखैक इशारा दैत बजलाह-
अभ्‍यागत लोकनि‍क वि‍चार उत्तम अछि‍, सभकेँ अनुकरण करैक चाहि‍यनि‍।

अपन समर्थन पाबि‍ बाहरी लोकनि‍ आरो अगि‍ला बात सुनैले जि‍ज्ञासा जगौलनि‍। मुदा जे पहि‍ने बाजत ओ चोर गाम-घरक खेलक मंत्र छै। तँए आँखि‍, कान तँ मुसाइ पंडि‍त दि‍स सभ देलनि‍ मुदा मुँह घुमौनहि‍ रहला। मुसाइ पंडि‍त लेल धनि‍ सन। कहि‍या लोक हमर बात सुनलक आ देखलक। सुनह नै सुनह, मनक उदगार छी, बजबे करब। मुदा सइयो आँखि‍ भीष्‍म–पि‍तामह जकाँ गड़ल देखि‍ सम्‍हरैत मुसाइ पंडि‍त बजलाह-
आम-जामुन इलाकाक हाड़-पाँजर टुटब, कि‍सानी ज्ञानमे साँप-कीड़ा काटब, हाड़मे पैसल जाड़केँ सेहो तँ देखए पड़त?”
गौंआँ वक्‍ता बूझि‍ जोरसँ सभ थोपड़ी बजौलक मुदा थोपड़ी सुनि‍ मुसाइ पंडि‍त अकवकमे पड़ि‍ गेलाह जे लोकक थोपड़ीक अवाज की छल। हास हँसी आकि‍ हँसी हास।

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