Monday, September 10, 2012

कनफुसकी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




गामेक स्‍कूलमे सोहनक संग दोस्‍ती भेल। ओना एक्के गाममे कनि‍ये हटि‍ कऽ दुनू गोरेक घरो अछि‍ मुदा आने गाम जकाँ। तीस साल पूर्व जखन एक्के वि‍द्यालयमे नोकरी भेटल तखन नजदीकी आएल। पाँच बर्ख पछाति‍ अबर-जात नौत-पि‍हानमे बदलि‍ गेल। दू जाति‍ रहि‍तो छान-बान कमल।

तीस बर्ख बाद, आइ एहेन भऽ गेल जे नजरि‍ दि‍स‍ नजरि‍ मि‍लए नै चाहैत अछि‍। सभ गुण मि‍लतो एकटा अवगुन सोहनमे शुरूहेसँ रहल जे अनका कानमे फुसफुसा वि‍चार कऽ घुसका-फुसका दैत। जे ऐबेर बुझलौं। सेहो केना बुझलौं तँ जेकरा लग बजलाह ओ आबि‍ जड़ि-‍सँ-अंत धरि‍ कहलनि‍। मन तुरूछि‍ गेल। संग केने जखन सोहन लग पहुँच पुछलि‍यनि‍- भाय, की सभ भोला भायकेँ कहलि‍यनि‍हेँ?”
प्रश्न सुनि‍ जना सोहनक बीख ओइ साँप सदृश्‍य बूझि‍ पड़ल जे हबक मारैले ककरो खेहारए लगैत, तइ बीच दोसरकेँ पाबि‍ काटि‍ लैत, तहि‍ना! ने ओ कि‍छु बजलाह आ ने दोहरा कऽ कि‍छु पुछलि‍यनि‍।
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