एकटा अभिभावक तमसा कऽ स्कूल
पहुँचलाह। हेड मास्टरकेँ उपराग दैत बजलाह-
“पढ़ाइ-लिखाइ तँ
जएह-सएह होइए। खाली खिचड़ीयेमे बेहाल रहै छी। जखन धिया-पुता पढ़बे नै करतै तखन
तँ हाकिम-हुकुमक तँ बाते छोड़ू चपरासियो नै बनतै। एसँ नीक तँ प्राइवेटे स्कूल
ने जइमे दूटा पाइये ने लगै छै, पढ़ाइ तँ नीक होइ छै। आइ तक ऐ स्कूलक बच्चा पढ़ि
कऽ कोन नाम कमेलकै।”
मास्टर सहाएब शान्त भावसँ
अभिभावककेँ समझबैत बजलाह-
“देखू, तमसाउ नै कोनो
हम खिबै छी खिचरी। ई तँ सरकारक योजना छी। ऐ योजनासँ लाभो बहुत छै। निच्चासँ
ऊपर धरि सभ माले-माल होइ छै।”
अभिभावक बजलाह-
“से केना?”
मास्टर सहाएब कहलखिन-
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