Monday, September 10, 2012

मुँहक बात मुँहेमे :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




पछबारि‍ गामबलाकेँ एहेन दशा कहि‍यो ने भेल हेतनि‍ जेहेन आइ बहि‍रा माए केलकनि‍?
पछबारि‍ गामक घटक बहि‍रापर अबैत छलाह। गाम, घर-बरक चर्च सुनि‍ नेने छेलखि‍न। मन मानि‍ गेल छलनि‍ जे अपना जोगर कुटुमैती नीक अछि‍।

गामक सीमानपर अबि‍ते एक गोटेकेँ पूछि‍ देलखि‍न। सभ गुणक चर्च नीके बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा बहि‍‍रा नाओं सुनि‍ मन भनभना गेलनि‍। मन भनभनाइते, बैलून जकाँ देहक शक्‍ति‍ नि‍कलए लगलनि‍। आमक गाछ देखि‍, नि‍च्‍चामे बैस सोचए लगलाह जे आबि‍ की करब?

घटकक भाँज बुझि‍ते बहि‍रा माए वि‍दा भेल। घटक लग पहुँच बाजलि‍- कोन गाॅ रहै छी, कतए जाएब?”
घटक- एतै एकटा लड़का उदेसे आएल छलौं मुदा लड़ि‍काक नौए बहि‍रा छि‍ऐ। मन भटकि‍ गेल। आबि‍ घुरि‍ जाएब।
बहि‍रामाए- जँ बेटा-बेटी खेलाइ पाछू बेहाल रहए आ माए-बापक आदेश नै मानए, ते कि‍ बाप-माए ओकरा मारतै आकि‍ बहि‍रा कहि‍ छोड़तै?”
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