कनमन
साढ़े चारि बजैत।
हाइ स्कूलसँ अबिते सुधीरक नजैर दरबज्जापर बैसल बाबा–श्याम सुन्दर–पर पड़लैन।
बाबाक खसल मन देख दरबज्जा-अँगनाक बीच मोड़पर सुधीर तेकठी जकाँ ठाढ़ भेल। केमहर
डेग बढ़ौत से फरिछेबे ने करइ। पहिने बाबाकेँ पुछिऐन जे किए मन खसल अछि, आकि किताब
रखि कपड़ा बदैल आबी। रस्तेसँ भूखो-पियास लगल अछि। नबे बजेक खेलहा छी...।
तेकठीक तीनू खुट्टाक
बीच अपनाकेँ सुधीर पौलक जे दूटाक कनाइत ‘तेकठी’ नाओं
धरबैए जखन कि तेसरक नाओं ‘गोड़ी’ भऽ
जाइ छै, जेकरा ऊपर लाद लादि लदाना दइ छइ। बाबाक बात बुझब सभसँ जरूरी अछि, मुदा
बरदाएल हाथे कइए की सकबैन..?
कपड़ा बदलब ओते महत
नै रखैए तँए एना करी जे बाबाकेँ कहिऐन- हमहूँ आबि गेलौं जइसँ जाबे ओ अपन बात
बजता-बजता ताबे पोथी रखि आएब। कनी डेगेमे झाड़ आनए पड़त...।
सहए करैत बाजल-
“बाबा, किए मन
खसल अछि?”
कहि पोथी रखए आँगन
गेल। पोथी रखि श्याम सुन्दरक लग आबि सुधीर बाजल-
“बाबा, मन खसैक
कारण की अछि?”
आस-निआसक बीच श्याम
सुन्दर ओझड़ाएल छला, तँए नजैर खसल छेलैन। पोताक प्रश्न भारी पबै छला। चालीस
बर्खक संगी हेरा-फेरीमे जहल चलि गेल छेलैन, तेकरे सोग रहैन। मुदा बाल-बोध लग
बाजी वा नै बाजी? छिपाएब झूठ हएत नै छिपाएब सेहो तँ नीक नहियेँ हएत। नीकक चर्च हेबाक
चाही, अधलाक तँ फलो अधले हएत...।
सोचैत-विचारैत श्याम
सुन्दरक मनमे उठलैन- एहनो तँ भऽ सकैए जे छिपबैत-छिपबैत छिनारक छिनरपनीए छीप
जाए! मुदा एहनो तँ भऽ सकैए जे एक-दोसराक अधला छिपबैत-छिपबैत छिपारेक समाज
बनि जाए! ..तत्-मत् करैत श्याम सुन्दर बजला-
“बौआ, अखने
सुनलौं जे रूपलाल जहल चलि गेल। मिरचाइक झाँझ जकाँ वएह मनकेँ मलीन केने अछि।”
श्याम सुन्दर जे
कहि अपनाकेँ हटबए चाहैथ से लगले नइ हटलैन। कारण भेल जे जहलक नाओं सुनि सुधीर
दोहरा देलकैन-
“किए रूपलाल
बाबा जहल गेला?”
सुधीरक प्रश्न श्याम
सुन्दरकेँ ज्वर आनि देलकैन मुदा ज्वार नै बनि तुरछैत ज्वारि तँ आबिए गेल
रहैन। बुझबैत कहलखिन-
“एते पुरान रहितो
रूपलाल समैकेँ ठेकानबे ने केलक। पुरना चालिसँ आब काज चलैबला छै! बुझथुन जे केहेन दादासँ पल्ला पड़ल।” m
शब्द संख्या- 323
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