मेकचो
पछुआ पकड़ैत मिथिलांचलक
किसानकेँ अपनो दोख ओतबे छैन जेते सरकारक। किएक तँ ओहो अपनाकेँ जनतंत्रक किसान
नइ बुझि पेलैन।
पाँच बीघा जोतक किसान
चुल्हाइ। आठम दसकमे गहुमक खेतीक संग सरकारी खादक अनुदान आएल। बीघा भरि गहुमक खेती
चुल्हाइ करत। एक बोरा यूरिया आ एक बोरा ग्रोमर खादक पूजी लगबैक विचार केलक। ओना
समुचित खादो आ पौष्टिक तत्वो खेतमे देब जुरब परहक फुरब भेल।
ब्लौकक माध्यमसँ
खाद भेटै छइ। पाँच दिन बरदा चुल्हाइ भी.एल.डब्ल्यू.सँ फर्म भरौलक। तीन दिनक
पछाइत कर्मचारियो लिखि देलखिन। दू दिनक पछाइत बी.ओ. साहैबक लिखला पछाइत
फर्म ब्लौक-ऑफिस पहुँचत जे आठम दिन भेटतै।
फार्म जमा केला पछाइत
घरपर आबि चुल्हाइ चपचपाइत पत्नी लग बाजल-
“ऐबेर अपन
गहुमक खेती नीक हएत!”
पतिक चपचपीमे चपचपा
रूसनी चपि-चपि गैंचियाइत नजैर दैत बजली-
“फगुआमे नवके
पुड़ी खाएब।”
तीस दिसम्बरकेँ
चुल्हाइ गहुम बागु केलक। पच्चीस किलो कट्ठा उपज भेल।
टुटैत उपजासँ टुटल
चुल्हाइक मन पत्नीकेँ कहलक-
“ऐ बेरसँ नीक
पौरुके भेल। चालीस किलो कट्ठा भेल रहए।”
रूसनी बजली-
“एना किए भेल?”
चुल्हाइ बाजल-
“तेहेन
चमरछोंछमे पड़ि गेलौं जे मेकचो-पर-मेकचो लगैत गेल। जइसँ बागु करैमे डेढ़ मास पछुआ
गेलौं! उपजा टुटि गेल!”
पतिक घाउपर मलहम
लगबैत रूसनी बजली-
“खेती जुआ छिऐ।
हारि-जीत चलिते रहै छइ। तइले की हाथ-पएर मारि बैस जाएब।”
बिसवास भरल पत्नीक
बात सुनि संकल्पित होइत चुल्हाइ बाजल-
“आब एहेन फेरिमे
नै पड़ब।”m
शब्द संख्या- 216
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