Monday, November 21, 2016

झूटका विदाइ

झूटका वि‍दाइ

जहि‍ना हारल नटुआकेँ झूटका वि‍दाइ होइ छै तहि‍ना ने हमरो भेल! मनमे अबि‍ते प्रोफेसर रतनक चि‍न्‍तन धार ठमैक गेलैन‍।
पि‍ताक श्राद्ध-कर्म समपन्न भेलाक तेसरा दि‍न प्रोफेसर रतन दरबज्‍जाक कुर्सीपर ओंगैठ‍ कऽ बैस मने-मन बीतल काजक समीक्षा करै छला। जहि‍ना नख-सि‍खक वर्णन होइत तहि‍ना ने सि‍ख-नखक सेहो होइए। मुदा काजक समीक्षा तँ मशीन सदृश होइए, जे पार्ट पाछू लगौल जाइए आ खोलैकाल पहि‍ने खुलैए‍।
प्रोफेसर रतन छगुन्‍तामे पड़ल छैथ जे समए केतए-सँ-केतए ससैर गेल आ...। आब‍ की थारी-लोटा आ कपड़ा-लत्ताक घटबी ओइ तरहेँ अछि‍ जेना पहि‍ने छल? कहू, ई केहेन भेल जे एते रूपैआ लोटा पाछू गमा देलौं! जँ समाजक बात नै मानितौं तँ दोखी होइतो, मानलौं तँ की मानलौं! लोटाक चर्च हुनका सभकेँ नै करक चाहि‍ऐन‍। तहूमे तेना लाबा-फरही करए लगला जे इस्‍टिलि‍या केना देबै, लोहा छी अशुद्ध होइए। नियमत: फूल, पि‍तैर‍ वा ताम हेबाक चाही! चानी-सोना तँ राजा-रजबारक भेल। ..वि‍चार अनि‍वार्य भऽ गेल। फेर एहेन प्रश्‍न किए उठल जे घरही नै दऽ बच्‍चासँ बुढ़ धरि‍ जे पंच औता सभकेँ होइन। सियानोक पनि‍पीबा वएह हएत जे धि‍या-पुताक।‍ तखन तँ लोटासँ लोटकी धरि‍क ओरि‍यान करू। तहूमे तेहेन अनरनेवा गाछ जकाँ भरि‍गर गाछ ठाढ़ कऽ देलैन‍‍ जे हाइ स्‍कूलक शिक्षक–गंगाधर–लोटाक संग धोतियो बँटलैन‍। तैठाम एको अलंग नै करितैथ, से केहेन होइतैन।
बजारसँ घुमला पछाइत‍ जहि‍ना नीक वस्‍तु देखलापर‍ मनमे उमकी उठैत, आ अधला देखलापर डुबकी लि‍अ पड़ैत, सएह ने भेल...।
प्रोफेसर रतनक मन कोसी-कमलाक एकबट्ट भेल पानि‍ जकाँ घोर-मट्ठा भऽ गेलैन‍। चि‍लहोरि‍ जकाँ झपटैत पत्नीकेँ कहलखि‍न-
मन बि‍साइन-बि‍साइन भेल जाइए आ अहाकेँ एक कप चाहो ने जुड़ैए?”
पति‍क आदेश सुनि‍ सुजीता चाहक ओरि‍यान केलैन‍।
चाह दैत सुजीता, पजरामे बैस जट-जटीन जकाँ पुछलखि‍न-
की भेल जे एना मन वि‍धुआएल अछि‍?”
ओना चाहक चुस्‍कीसँ रतनक बि‍सबि‍सी थोड़े कमलैन‍ जरूर, मुदा नि‍ड़कटोवैल‍ भऽ कऽ छुटल नै छेलैन‍। ओही झोंकमे झोंकि‍ देलखि‍न-
हएत कथी झूटका वि‍दाइ भेल!”
पति‍क बात सुजीता नै बुझि‍ सकली। बुझि‍यो केना सकि‍तैथ‍। मुदा रोड़ाएल दालि‍क सुगन्‍ध जकाँ अनुमानए लगली। मनमे जे कुवाथ भेल छैन‍‍‍ से जाबे खोलता नइ, ताबे केना बुझब? जँ कोनो तेहेन बात रहि‍तैन‍ तँ एना साँप जकाँ गैंचि‍या-गैंचि‍या किए चलि‍तैथ‍! बजली-
कनी-काल अराम करू, हमरो हाथ काजेमे बाझल अछि, ओकरा सम्‍हारि‍ लइ छी।m
शब्‍द संख्‍या- 359

No comments:

Post a Comment