Monday, November 21, 2016

सरही सौबजा

सरही सौबजा


दि‍न भरि‍ सात गोरेक संग झंझारपुरि‍या वेपारी आम तोड़ि काँच-पाकल आ फुटल बेरा, टौकड़ी बना, ट्रकक प्रतिक्षामे टहलैत गामक चाहक दोकानपर आबि‍ अनेरे बजैत-
एहेन ठकान जि‍नगीमे नइ ठकाएल छेलौं, जेहेन आइ ठकेलौं!”
चाहे दोकानक छर्ड़ा बुझि‍ आनो-आन छर्ड़ा छोड़लक-
झंझरपुरि‍या तँ इलाकाकेँ ठकैए आ ओकरा ठकि‍ लेत हमर गौंआँ?”
वेपारियोकेँ मनमे कि‍छु रहै तँए पाछू हटैले तैयार नहि। बत-कटौवैल‍ एहेन चलि‍ गेल जे ने एकोटा ऐ गामक नीक अछि‍ आ ने झंझरपुरि‍या। बोलीक मारि‍ तँ धुड़-झाड़ होइत, मुदा आगू बढ़ैक साहस कि‍यो ने करए। एकटा गामक प्रति‍ष्‍ठा बुझि‍ तँ दोसर घोड़नक कटान बुझि।
ओना चौकक रोहानी ठीक छेलै कि‍एक तँ सूर्यास्‍तक समए छल। चौकक रोहानी देखते जटा भाय चाहे दोकानपर बैसला। समाजि‍क प्रश्‍न, तँए हस्‍तक्षेप कएल जा सकैए। जटा भाय पुछलखिन-
कथीक घोंघौज छी?”
झंझारपुरबला वेपारी कहलकैन-
अहीं गाममे लखनजी सँ पाँच हजारमे सौबजा आमक एकटा गाछ नेने छेलौं तइमे ठकि‍ लेलैन‍।
अपन चर्च सुनि‍ लखनजी सेहो मोबाइलि‍क दोकानपर सँ चाहक दोकानक आगूमे आबि‍ ठाढ़ भेला। वेपारीक प्रश्‍न उठि‍ते लखनजी पुछलखि‍न-
की ठकि‍ लेलौं, बाजू।
वेपारी कहलकैन-
कलमी बुझि‍ नेने छेलौं, सरही दऽ ठकि‍ लेलौं!”  
तैपर लखनजी पुछलखिन-
केतेमे नेने छेलौं आ आम केतेक भेल?”
से तँ नफगर अछि‍, पाँच हजारमे नेने छेलौं। खर्च-बर्च काटि‍ कहुना पाँच हजार बँचबे करत?”
जटा भाय पुछलखिन-
तखन जे एना बजै छी से उचि‍त भेल?”
वेपारी कहलकैन-
हमर बात दोसर अछि‍। सौबजा कलमी होइ छइ। हि‍नकर अँठियाहा छिऐन, माने सरही छिऐन। ओना साइजोमे ठीक छैन।
जटा भाय-
अहाँ केना बुझै छी जे मुँह-नाक एक रहि‍तो सरही छी?”
वेपारी कहलकैन-
चचाजी, अहूँ भासि‍ जाइ छी। कहुना भेलौं तँ वेपारी भेलौं कि‍ने। कुमारि‍-बियौहतीक भाँज जँ नै बुझबै तँ घटकैती कएल हएत?m
शब्‍द संख्‍या- 269

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