Monday, November 21, 2016

मुँहक खतियान

मुँहक खतियान

ऐबेर दुर्गापूजाक नव उत्‍साह अछि‍। उत्‍साहो उचि‍ते, हाले-सालमे मलेमासक वि‍दाइ भेल अछि‍‍। एक दि‍न माघ बितने तँ आशा फुरफुराइत पाँखि‍ झाड़ए लगैए‍, भलेँ पच्‍चीस दि‍नक टप-टप पाला खसैत शीतलहरी आगू किए ने हुअए। मुदा से नहि, कहि‍यो नावपर गाड़ी चढ़ैए तँ कहि‍यो गाड़ीपर नाव। तहूमे दुनूक बीच, एहेन रंग-रूपक मि‍लानी रहै छै जे दुनू दुनूकेँ पीठेपर उठबैए आ पेटेमे रखैए। से ऐबेर थोड़े हएत, तेते ने लोक रौदियाएल अछि‍ जे महारेपर सँ कुदि-कुदि‍ उमकत...।
औझुका दि‍न भगवतीक माटि‍ लेल जाएत। भोजक पाते देख‍ धि‍या-पुता चपचपाए लगैत जे खूब खेबैन। आखि‍र भोज होइते किए छइ। चारि‍ बजे भोरेसँ पीह-पाह शुरू भऽ गेल। ओना रघुनी भायकेँ बुझल रहैन‍‍ मुदा तैयो पीह-पाह नीक नै लगैत रहैन‍। कारण रहइ जे दि‍नक फल भोजन बुझि‍ क्रमि‍क काजक क्रि‍या बुझै छैथ। जाबे चौकक हवा-पानि पीबए जइतैथ, तइसँ पहिनहि चाहक चुल्हि‍ पजरल देखलैन‍।
अपन मनकमना पुरबैत तेतरा दस कप चाहक भोज केलक। भोजक सत्तैर‍‍मे भोजैत अपन बात बजि‍ते अछि, तेतरो बाजल-
भाय, ट्रेन्‍ड डरेबर भऽ गेलि‍यौ, भगवतीक दयासँ आब कोनो दुख-तकलीफ परि‍वारकेँ नै हएत।
दोकानक दोसर ब्रेंचपर पोखरिया, असामी आ रामेसर सेहो बैसल छल। तेतराक बात जेना रामेसरक छातीमे छेदि‍ केलकै तहि‍ना रामेसरकेँ झोंक चढ़ि गेलइ। बाजल-
बाप जे मरूआ लेलकै से तँ अखन तक सठाएले ने भेलइ। आ..!”
रामेसरक बात सुनि‍ते तेतरा लोढ़ियौलक। मुदा कएल की‍ जाए? दुनूकेँ थोम-थाम लगबैत रघुनी भाय कहलखि‍न-
दू घन्‍टा लोककेँ बातो बुझैमे लगतैन‍ तँए दू घन्‍टा दुनू गोरे अपन-अपन घरपर जाउ।
घर दिस रामेसर बढ़ैत बाजल-
बाढ़ि‍मे घर खसि‍ पड़ल, नइ तँ अखने बोही आनि‍ कऽ पंचक बीचमे फेक‍ दैति‍ऐ।
घरमुहाँ होइत तेतरा बाजल-
की बुझि पड़ै छै जे बबेबला सनकी अछि‍, झाड़ि‍ देबइ। जँ ओकर बाँकीए छै तँ मनुख जकाँ फुटमे कहैत।m

शब्‍द संख्‍या- 278

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