मुँहक खतियान
ऐबेर दुर्गापूजाक नव
उत्साह अछि। उत्साहो उचिते, हाले-सालमे मलेमासक विदाइ भेल अछि। एक दिन माघ
बितने तँ आशा फुरफुराइत पाँखि झाड़ए लगैए, भलेँ पच्चीस दिनक टप-टप पाला खसैत
शीतलहरी आगू किए ने हुअए। मुदा से नहि, कहियो नावपर गाड़ी चढ़ैए तँ कहियो
गाड़ीपर नाव। तहूमे दुनूक बीच, एहेन रंग-रूपक मिलानी रहै छै जे दुनू दुनूकेँ
पीठेपर उठबैए आ पेटेमे रखैए। से ऐबेर थोड़े हएत, तेते ने लोक रौदियाएल अछि जे
महारेपर सँ कुदि-कुदि उमकत...।
औझुका दिन भगवतीक
माटि लेल जाएत। भोजक पाते देख धिया-पुता चपचपाए लगैत जे खूब खेबैन। आखिर भोज
होइते किए छइ। चारि बजे भोरेसँ पीह-पाह शुरू भऽ गेल। ओना रघुनी भायकेँ बुझल रहैन
मुदा तैयो पीह-पाह नीक नै लगैत रहैन। कारण रहइ जे दिनक फल भोजन बुझि क्रमिक काजक
क्रिया बुझै छैथ। जाबे चौकक हवा-पानि पीबए जइतैथ, तइसँ पहिनहि चाहक चुल्हि पजरल
देखलैन।
अपन मनकमना पुरबैत
तेतरा दस कप चाहक भोज केलक। भोजक सत्तैरमे भोजैत अपन बात बजिते अछि, तेतरो बाजल-
“भाय, ट्रेन्ड
डरेबर भऽ गेलियौ, भगवतीक दयासँ आब कोनो दुख-तकलीफ परिवारकेँ नै हएत।”
दोकानक दोसर ब्रेंचपर
पोखरिया, असामी आ रामेसर सेहो बैसल छल। तेतराक बात जेना रामेसरक छातीमे छेदि केलकै
तहिना रामेसरकेँ झोंक चढ़ि गेलइ। बाजल-
“बाप जे मरूआ
लेलकै से तँ अखन तक सठाएले ने भेलइ। आ..!”
रामेसरक बात सुनिते
तेतरा लोढ़ियौलक। मुदा कएल की जाए? दुनूकेँ थोम-थाम लगबैत रघुनी भाय
कहलखिन-
“दू घन्टा
लोककेँ बातो बुझैमे लगतैन तँए दू घन्टा दुनू गोरे अपन-अपन घरपर जाउ।”
घर दिस रामेसर बढ़ैत
बाजल-
“बाढ़िमे घर
खसि पड़ल, नइ तँ अखने बोही आनि कऽ पंचक बीचमे फेक दैतिऐ।”
घरमुहाँ होइत तेतरा
बाजल-
“की बुझि पड़ै
छै जे बबेबला सनकी अछि, झाड़ि देबइ। जँ ओकर बाँकीए छै तँ मनुख जकाँ फुटमे कहैत।”m
शब्द संख्या- 278
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