Monday, November 21, 2016

उड़हैड़

उड़हैड़
एक तँ ओहि‍ना जुड़शीतलक भोर, चारि‍ए बजेसँ इनार चन्‍द्रकूप बनि‍ अकास-पताल एक केने, सि‍रसि‍राइत वसन्‍त सि‍र सजबै पाछू बेहाल, जे जेतइ से तेतइसँ पीह-पाह करैत, तैपर तीन दि‍नसँ एकटा नवका गप सेहो गाममे सेहो उपैक‍ गेल अछि। ओ ई जे कपरचनमा उड़हैड़‍ गेल! कपरचना उड़हैड़ गेल..!
ओना ऊपरका जहाज जकाँ स्‍त्रीगणक बीच गप हवाइ भेल मुदा पुरुखक बीच कोनो सुनि‍-गुनि‍ नहि। तँए कपरचनमाक पि‍ता–रघुनाथले धैनसन। माए कुड़बुड़ाइत रहइ, मुदा सासुक डरे मुँह नै खोलैत। ओना, परगामी भेने माइयो आ पत्नियोँक मन ओते घबाह नइ होइत। होइत तँ ओतए अछि जेतए सीमानक आड़ि‍ धारक बाढ़ि‍मे भँसिया जाइए। कपरचनमाक दादी–कुसुमा दादी–क मनमे मि‍सियो भरि‍ हलचल नहि। कोनो कि‍ बेटी जाति‍ छी जे अबलट लागत। बेटा धन छी जेतए रहत ओतए खुट्टा गाड़ि‍ कऽ रहत। कि‍यो बजैए तँ अपन मुँह दुइर करैए।
जुड़शीतल पाबैन‍, अपने हाथे कुसमा दादी इनारसँ पानि‍ भरि असीरवाद बँटबे करती। तहूमे तेहेन गप परि‍वारक उड़ल छैन‍‍ जे बाँटबो‍ जरूरीए छैन। ओना दादी अन्‍हरगरे उठली‍, मुदा पहरक ठेकान नै रहलैन‍। जखन गाममे पीह-पाह शुरू भेल तखनए फुरफुरा कऽ उठि‍ लोटा-डोल नेने इनार दि‍स बढ़ली। मनमे ईहो रहैन‍‍ जे इनार परहक असीरवाद अँगनाक अपेक्षा बेसी नीक होइ छइ। तँए सभसँ पहि‍ने इनारपर पहुँचब जरूरी बुझलैन‍। आब कि‍ कुशक जौर आकि घट थोड़े रहल, मुदा तैयो...।
इनारसँ डोल ऊपरो ने भेल छेलैन‍ कि‍ नवनगरवाली अबि‍ते देखलैन‍ जे दादी असगरे छैथ तँए अवसरक लाभ उठा ली, नइ तँ पचताइये कऽ की हएत...। उपरागी जकाँ नवनगरवाली पुछलखिन-
उढ़ड़ा एलैन‍ कि नहि?”
नवनगरवालीक बोल कुसमा दादीकेँ मि‍सियो भरि‍ नै कबकबौलकैन‍। मनमे नचैत रहैन‍‍ जे एके पीढ़ी ऊपरक लोकक ने संकोच करैए, हम तँ दू पीढ़ी छि‍ऐ। बाल-बोधक उकठपनो गपक जवाब उकठपने जकाँ दिऐ से केहेन हएत! नवनगरवालीक आँखि‍मे आँखि‍ चढ़बैत दादी बजली-
कनि‍याँ, अहाँ कहुना भेलौं तँ पोते-पोती भेलौं। कि‍छु छी कपरचना तँ बेटा धन छी। जँ केकरो लैयो कऽ चलि‍ गेल हेतै तँ सोचि‍ नेने हेतै जे ठाठसँ जि‍नगी केना बि‍ताएब। जेतए रहत जगरनथिया खन्‍ती गाड़ि देत।
भादवक बर्खा जकाँ कुसुमा दादीक मुँह बरिसैत रहैन‍। इनारक कि‍नछैड़मे कनबाहि‍ भेल दुलारपुरवाली सेहो दादीक सभ बात सुनि‍ नेने रहैथ‍। मन भि‍न-भि‍ना गेल रहैन‍। तैपर जुड़शीतलक उखमजक जे टटका-बसियाक भि‍रंत छि‍हे। टटका नीक आकि‍ बसिया? बसिया नीक आकि‍ तेबसिया? तेबसिया नीक आकि‍ अमवसिया? मुदा टटके नवनगरवालीक पक्ष लैत दुलारपुरवाली दादीक सोझ आबि बजली-
सभटा कएल हि‍नके छिऐन। दुनि‍याँमे नाओंक अकाल पड़ि‍ गेल छेलै जे कपरचनमा नाओं रखलखि‍न?”
सतैहिया बर्खाकेँ छुटैक आशामे थोड़े छोड़ल जा सकैए। बीचोमे जोगारक जरूरत ऐछे। जँ से नइ तँ बि‍ल-बाल होइत केमहर-केमहर बहि‍‍ जाएत से थोड़े बुझि‍ पेबइ। कुसमा दादी दुलारपुरवालीकेँ कहए लगलखि‍न-
तों सभ फुलक नाओंकेँ बेसी पसि‍न करै छहक, मुदा तोंही कहह जे जेते अपना गाममे फूल अछि‍ ओकर मूल्‍य कि‍ हेबाक चाही। मुदा देखै कि‍ छहक। पोताक नाओं कोनो अधला रखने छी जेहेन चालि‍-ढालि‍ देखलि‍ऐ तेहेन नाउओं रखि‍ देलि‍ऐ।
दादीक उतारा सुनि‍ नवनगरवाली मुँह चमकबैत बजली‍-
दादी, अबेर भेल जाइ छइ। एक चुरूक असीरवाद देती तँ दोथु नइ तँ अपन राखथु।
अगुआएल काजकेँ पछुआइत देख‍ दादी डोल नेनहि‍ नवनगरवालीकेँ कहलखि‍न-
मन तँ होइए जे सौंसे डोल उझैल‍ दि‍अ मुदा अखन काजक बेर अछि‍, जा तोहूँ घर-अँगना देखहक।m
शब्‍द संख्‍या- 504

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