महानगरमे, आजुक समयानुसार
एकल परिवार। सभ अपना अपनामे। एक भाँइ कतौ तँ दोसर कतौ। बाबू गाममे तँ माए किनको एक
भाँइ लग। एहने परिवेश आ मकड़जालमे ओझराएल परिवारक एकटा माए अप्पन बेटासँ, “ई की नी० (नी० माएक पोती) काल्हिसँ अस्पतालमे भर्ती छै आ तू
सभ हमरा कहबोसँ गेलअ।”
बेटा चुप्प, माए आगू, “बूझलीऐ आबैक पुरसैत केकरो लग नहि छैक, कनी एकटा फ़ोनो तँ
करबा चाही।
बेटा, “की कहितीयै ? कोनो तरहक सुख तँ हम अहाँ सबहक जीवनमे
कहियो दऽ नहि पएलहुँ, दुख कहि अहाँ सबहक मोनकेँ दुखी करैक हमरा कोन अधिकार अछि।”
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