Sunday, October 20, 2013

आगि

159. आगि

- "ब्रह्मदेव भाइ एकटा बात सुनलहो ?रमेशबा माए-बापकेँ छोड़ि कऽ पड़ा गेलै ।"
- "हँ हौ खेखन भाइ, बात तँ हमरो कान धरि आएल छलअ...सुनलियै जे कोनो छौड़ीकेँ संगे लऽ गेलैए ।"
- "बुझहो तऽ, जे छौड़ा मूड़ी गोंति कऽ चलै छलै से एहन काज केलकै ।"
- "अनर्थ कऽ देलकै छौड़ा ।बाभन भऽ कऽ चमाइनक संग पड़ेलै ! एँ हौ पिरथी भाइ...एते तागत कोना आबि गेलै रमेशबामे ?"
- "हे हौ खेखन तूँहूँ बुड़बके बला गप करै छहो ।छौड़ाक देहमे आगि लागल छलै...प्रेमक आगि...ई आगि जाति-पाति थोड़े देखै छै । ई आगि सबटा बन्हकेँ जड़ा दै छै... ई तँ खूनक सम्बन्धोकेँ सुड्डाह कऽ दैत छै ।बुझलहो ने...हँ ।"

अमित मिश्र

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