Sunday, September 29, 2013

गारि

151. गारि

वातावरणमे शहनाईक मधुर स्वर कंपित भऽ रहल छल ।आँगनमे नव कनियाँकेँ ससुर द्वारा साड़ी, गहना देल जा रहल छल ।तखने लड़ाकक भाएकेँ निशाना बनबैत लड़कीक बहिन गारि युक्त गीत गेनाइ शुरू केलक "मुँहझौंसा भैंसूर एखनेसँ आँखि किए मारै छै
बहसल माएक बेटा बापेकेँ गरियाबै छै..."एकर आगूक पाँति तेहन छल जे सुननाइयो पाप बुझाएत ।एते सूनिते लड़काक जेठ भाइ पिनकि गेल "एँ यै अहाँक लाज-धाख नै अछि ।माए-बापक आगू बिख्खिन-बिख्खिन गारि पढ़ै छी. . .डोबरीमे डूबि नै जा होइये ?"
प्रश्न सूनि लड़कीयो पक्ष तावमे आबि गेल ।लड़कीक माए बाजली "यौ पाहुन एते पिनकै किए छी ?ई तँ परम्परा अछि ।एतुका अशीर्वादी बूझि लिअ ।"
सारि सब बाजल "ई बुझू जे खाली छोटका गारि पढ़ैलौं ।हमरा तँ बड़को आबैत अछि ।हे लिअ . . .चंडलबा भैंसूर बहिने संग सू . . ."
"चुप . . .एकदम चुप भऽ जो ।"लड़का वेदीसँ उठि गेल आ गेठी खोलैत तमासे थरथराइत बाजल"जकर छोट बहिन एते निर्लज्ज हेतै ओकर बड़कीयो तँ तेहने हेतै ।तूँ सब भाइ बहिनक पवित्र रिश्तापर करिखा पोति देलें ।हम वियाहसँ एखने मुक्त होबऽ चाहैत छी । . . .एहने बज्जर सन बोल चलते तोहर सभक इज्जत घटैत-घटैत एक दिन लुटा जाइ छौ ।परम्पराकेँ तूँ सब अधर्मक ठिकाना बना लेने छें ।मैथिलक गारि तखने धरि नीक लागैत छै जखन धरि ओ अश्लीलताक बान्ह नै तोड़ै छै . . .हम जाइ छी ...अपन बहिनक सींथ पखारि अपने हाथे सिनूरा दिहें ।"एते कहि लड़का गेठी खोलि आँगनसँ बाहर निकलि गेल ।घरबैया पाथरक मूर्ती जकाँ कींकर्तव्यविमूढ ठाढ़ रहि गेलाह ।

अमित मिश्र

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