“ई की बाबू ? जे कियो मांगै
लेल अबै छै सभकेँ अहाँ दस बीस रुपैया दऽ दए छीऐ आब ओ जमाना नहि रहलै, चोर उच्चका
सभ एनाहिते मांगैकेँ एकटा धन्धा बना लेलकैए। नव-नव बहाना बना कए मांगै लेल आबि जाइ
छै।”
“गृहस्थ धर्मक पालन करैत केएकरो
खाली हाथ आपस नहि जेए देबा चाही। के जनैए निनानबेटा झूठमे एकटा सत्यो हुए, निनानबेटा
झूठ बाजि कए पाइ लए जेए से नीक मुदा एकटा जरूरतमंदकेँ नहि भेटैसे ठीक नहि। बांकी
भगवती देखै छथिन।”
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