प्रवल आ सुमन एक दोसरसँ बहुत प्रेम करैत
छल | दुनू संगे- संग बितल पाँच बरखसँ पढि रहल छल आ ओहि समयसँ दुनूक बिचक
चिन्हा परिचय कखन अगाध प्रेममे बदैल गेलै से दुनूमेसँ कएकरो सुधि नहि रहलै | आब दुनूक प्रेम अपन चरम सीमापर पहुँच
चुकल छैक आ एक दोसरकेँ बिना जीवनक कल्पनो दुनूक लेल असहनीय छैक | दुनूक प्रेम आब दुनूक एकान्तीसँ निकैल
कालेज कम्पलेक्समे गमकए लगलै आ तरे-तरे गाम तक सेहो | मुदा रुढ़िवादी ताना-बानामे बुनल
समाजक व्यवस्थामे दुनूक मिलन आ विवाहक कल्पनो असंभव छलैक | किएक तँ प्रवल ब्राह्मण आ सुमन
तेली जातिकेँ छल आ प्रवलक माए बाबू आ समाजकेँ लोग एहि बिजातीय विवाहकेँ पक्षमे कोनो
हालतमे तैयार नहि | एहि सभ गप्पक अनुभब प्रवल आ सुमनकेँ सेहो भेलैक मुदा ओहो दुनू अप्पन
प्रेमसँ बन्हल वेबस | करए तँ करए की ? समाजक व्यबस्थाक कारणे ब्याहक कल्पने
मात्रसँ देह सिहैर जाइ | दुनूक प्रेम आब ओइ सिखरपर पहुँच गेलैक जतएसँ वापसीक कोनो
गुंजाइस नहि | मए बाबू सभटा जनितो समाजक डरे गप्प मानैक तैयार नहि |
एक दिन दुनू गोटा एहि विषयपर गप्प करैत
रहे, प्रवल बाजल, "चलू दुनू गोते दिल्ली, मुम्बई भागि ओहि ठाम ब्याह कए लेब नहि
कोनो समाज नहि गाम आ नहि माए बाबूक डर |"
सुमन, "से तँ ठीक छैक मुदा
हम अपन जीवन जीबैक लेल हुनक जीवनसँ कोना खेलव जीनक जीवैक आसा अपना दुनू गोते छी | सोचू हमरा भगला बाद हमर माए बाबूकेँ आ
अहाँक भगला बाद अहाँक माए बाबूक समाजमे की प्रतिस्ठा रहि जेतैंह आ ओकर बाद हुनक
जीवन केहन हेतैंह आ एहेन कए कs की हम दुनू अपन जीवनकेँ खुश राखि पाएब | प्रेम तँ तियागक नाम छैक | ऐना एकटा अनुचीत डेग उठा कए हम अपन
प्रेम कए बदनाम कोना कए सकै छी | रहल मिलन आ वियोगक गप्प तँ मिलनकेँ लेल एकैटा जन्म नहि छैक, एहि जन्ममे नहि अगिला जन्ममे अपन मिलन
अबस्य होएत |"
सुमनकेँ ई गप्प सुनि प्रवल किछु नहि
बाजि पएल ओकरा अपन करेजासँ सटा जेना सभ किछु बिसरि जएबाक प्रयास कए रहल अछि |
अगिला भोरे-भोरे गामक पोखरि मोहार पर
पीपड़ गाछक निच्चा भिड़क करमान लागल | सामने पीपड़ गाछसँ प्रवल आ सुमनकेँ मुइल
देह फसड़ी लागल लटकल | दुनूकेँ आँखि बाहर निकलल जेना समाजसँ एखनो किछु प्रश्न कए रहल
अछि - ऐना कहिया धरि, प्रेमक बलि लेब ?
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