आइ दस बर्खक बाद कियोक पाहून छोटकी काकीक अँगना एलैंह | पहुनो परख गरीबक घर अँगना किएक एता | छोटकी काकी ओनाहितो गरीब मसोमात एहनठाम कि सेबा सत्कार भेटक उम्मीद | पाहुनोकेँ तँ हुनकर बहिनक बेटा | ओकरा ओ बारह बर्ख पहीले देखने रहथि आ आब ओ सत्रह बर्खक पाँच हाथक जबान भए गेल अछि | आबिते अपन मौसीकेँ पएर छू कए गोर लगलक |
"केँ बौआ चिन्हलहुँ नहि ?"
"मौसी ! हम लोटन, अहाँक बहीन मालतीकेँ बेटा |"
मौसी (छोटकी काकी) दुनू हाथे सिनेहसँ लोटनकेँ माथ पकैर अपन करेजासँ सटा, " चिन्हबौ कोना, मूड़नेमे पाँच बर्खक अवस्थामे जे देखलीयै से देखने देखने, आइ कोना ई गरीब मौसीक इआद आबि गेलौ |"
लोटन, "मौसी मधुबनीमे हमर परीक्षाक सेंटर परल छल आइ परीक्षा खत्म भेल तँ मोनमे भेल मौसीक घर सौराठ तँ एहिठामसँ कनिके दूर छैक भेट कए आबि "
मौसी, " जुग- जुग जीबअ नेन्ना, एहि दुखिया मौसीक इआद तँ रहलै | आ मालती केहन ? ओझाजी केहन ?"
लोटन, "सब कियो एकदम फस्ट किलास, दनादन, ओ सब आब छोरु पहिले किछ नास्ता कराऊ, मधुबनीसँ सौराठ पएरे अबैत-अबैत बड्ड भूख लागि गेल |"
सुनिते मातर मौसीक छातीमे धकसँ उठल, ओ मने- मन सोचए लगलि - नेनाकेँ की खुवाऊ ? घरमे किछु नहि अपने तँ माँगि बेसए कए गुजारा कए लै छी एकर नास्ता भोजनक व्यवस्था कतएसँ होएत | "
हुनक सोचकेँ बिचेमे तोरैत लोटन फेरसँ बाजल, " मौसी जल्दी बड्ड भूख लागल |"
अपनाकेँ सम्हारैत मौसी, "हाँ एखने हम भात, दालि, भुजिया, तरुआ, नीकसँ बना कए नेन्नाकेँ दै छी, अहाँ कनी बैसू |" ई कहैत मौसी भंसा घर दिस बिदा भेली, जहन की हुनका बुझल जे घरमे किछु नहि अछि |
मुदा हुनका पाँछा-पाँछा लोटन सेहो आबि, " नहि मौसी एतेक काल हम नहि रुकब पाँच बजे मधुबनीसँ बाबूबरहीक अन्तीम बस छै आ चारि एखने बाजि गेलै |"
मौसी अपन घरक हालत देखि लोटनक गप्पक उतर नहि दए सोचय लगलि, "आह ! बिधाता नेन्नाकेँ रूकैयो लेल नहि कहि सकै छी |"
एतबामे लोटन भंसा घरक बर्तन सबकेँ देखि बाजल, " एहि बर्तन सबमे सँ जे किछु अछि दए दिअ |'
"हे राम !" मौसीक मन कनाल, बर्तनमे किछु रहैक तहन नहि | आगू हुनक मुँह बंद भए गेलन्हि, बकोर लगले केँ लगले रहलनि | बड्ड सहाससँ गप्पकेँ समटैत बजली, "नहि बौआ किछु नहि छौ, हम एखने बिना देरी केने बनाबै छी |"
लोटन, "नहि नहि मौसी बनाबैकेँ नहि छै, बस छुटि जाएत |" एतबेमे लोटनक नजैर टीनही ढकनासँ झाँपल कोनो समान पर परल | आगू जा ढकना उठा, "हे मौसी ई की ?"
मौसी अबाक, कि बजति, पहील बेर नेना आएल आ ओकरा खूददीक रोटी खुआउ ओहो राइतेकेँ बनल | रातिमे एकटा खूददीक रोटी बनेने रहथि, आधा खा आधा ढकनीसँ झाँपि राइख देने रहथि |
लोटन ओहि रोटीकेँ दाँतसँ काटि कए खाइत, " एतेक नीक रोटी तँ हम कहीयो खेन्हें नहि छलहुँ, माए तँ खाली छाल्ही भात, दूध-भात, दूध-रोटी, खुआ-खुआ कए मोन घोर कऽ दैए | आहा एतेक स्वाद तँ पहील बेर भेट रहल अछि |"
मौसी लोटनक गप्प आ ओकर खएक तेजी देख बजली, "रुक-रुक कनी आचारो तँ आनि देबअ दए |" ई कहि मौसी अचार ताकै लेल एम्हर -उम्हर ताकै लगली मुदा अचार कतौ रहै तहन तँ भेटै |
लोटन, "रहअ दीयौ, एतेक नीक ई मोटका रोटी रहै अचारकेँ कोन काज | रोटी तँ खतम भए गेल | मौसी बकर-बकर ओकर मुँह तकैत रहली |
लोटन, "अच्छा आब हम जाइ छी, घर देख लेलीयै फेर मधुबनी एलहुँ तँ अहाँ लग जरुर आएब, मुदा हाँ एहने नीकगर मोटका रोटी बनेने रहब " ई कहैत मौसीकेँ गोर लागि लोटन गोली जकाँ बाहर आबि गेल | मुदा बाहर एला बाद मौसीक दयनीय हालत देखि ओकर दुनू आँखिसँ नोरक धार बहैत रहै |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
"केँ बौआ चिन्हलहुँ नहि ?"
"मौसी ! हम लोटन, अहाँक बहीन मालतीकेँ बेटा |"
मौसी (छोटकी काकी) दुनू हाथे सिनेहसँ लोटनकेँ माथ पकैर अपन करेजासँ सटा, " चिन्हबौ कोना, मूड़नेमे पाँच बर्खक अवस्थामे जे देखलीयै से देखने देखने, आइ कोना ई गरीब मौसीक इआद आबि गेलौ |"
लोटन, "मौसी मधुबनीमे हमर परीक्षाक सेंटर परल छल आइ परीक्षा खत्म भेल तँ मोनमे भेल मौसीक घर सौराठ तँ एहिठामसँ कनिके दूर छैक भेट कए आबि "
मौसी, " जुग- जुग जीबअ नेन्ना, एहि दुखिया मौसीक इआद तँ रहलै | आ मालती केहन ? ओझाजी केहन ?"
लोटन, "सब कियो एकदम फस्ट किलास, दनादन, ओ सब आब छोरु पहिले किछ नास्ता कराऊ, मधुबनीसँ सौराठ पएरे अबैत-अबैत बड्ड भूख लागि गेल |"
सुनिते मातर मौसीक छातीमे धकसँ उठल, ओ मने- मन सोचए लगलि - नेनाकेँ की खुवाऊ ? घरमे किछु नहि अपने तँ माँगि बेसए कए गुजारा कए लै छी एकर नास्ता भोजनक व्यवस्था कतएसँ होएत | "
हुनक सोचकेँ बिचेमे तोरैत लोटन फेरसँ बाजल, " मौसी जल्दी बड्ड भूख लागल |"
अपनाकेँ सम्हारैत मौसी, "हाँ एखने हम भात, दालि, भुजिया, तरुआ, नीकसँ बना कए नेन्नाकेँ दै छी, अहाँ कनी बैसू |" ई कहैत मौसी भंसा घर दिस बिदा भेली, जहन की हुनका बुझल जे घरमे किछु नहि अछि |
मुदा हुनका पाँछा-पाँछा लोटन सेहो आबि, " नहि मौसी एतेक काल हम नहि रुकब पाँच बजे मधुबनीसँ बाबूबरहीक अन्तीम बस छै आ चारि एखने बाजि गेलै |"
मौसी अपन घरक हालत देखि लोटनक गप्पक उतर नहि दए सोचय लगलि, "आह ! बिधाता नेन्नाकेँ रूकैयो लेल नहि कहि सकै छी |"
एतबामे लोटन भंसा घरक बर्तन सबकेँ देखि बाजल, " एहि बर्तन सबमे सँ जे किछु अछि दए दिअ |'
"हे राम !" मौसीक मन कनाल, बर्तनमे किछु रहैक तहन नहि | आगू हुनक मुँह बंद भए गेलन्हि, बकोर लगले केँ लगले रहलनि | बड्ड सहाससँ गप्पकेँ समटैत बजली, "नहि बौआ किछु नहि छौ, हम एखने बिना देरी केने बनाबै छी |"
लोटन, "नहि नहि मौसी बनाबैकेँ नहि छै, बस छुटि जाएत |" एतबेमे लोटनक नजैर टीनही ढकनासँ झाँपल कोनो समान पर परल | आगू जा ढकना उठा, "हे मौसी ई की ?"
मौसी अबाक, कि बजति, पहील बेर नेना आएल आ ओकरा खूददीक रोटी खुआउ ओहो राइतेकेँ बनल | रातिमे एकटा खूददीक रोटी बनेने रहथि, आधा खा आधा ढकनीसँ झाँपि राइख देने रहथि |
लोटन ओहि रोटीकेँ दाँतसँ काटि कए खाइत, " एतेक नीक रोटी तँ हम कहीयो खेन्हें नहि छलहुँ, माए तँ खाली छाल्ही भात, दूध-भात, दूध-रोटी, खुआ-खुआ कए मोन घोर कऽ दैए | आहा एतेक स्वाद तँ पहील बेर भेट रहल अछि |"
मौसी लोटनक गप्प आ ओकर खएक तेजी देख बजली, "रुक-रुक कनी आचारो तँ आनि देबअ दए |" ई कहि मौसी अचार ताकै लेल एम्हर -उम्हर ताकै लगली मुदा अचार कतौ रहै तहन तँ भेटै |
लोटन, "रहअ दीयौ, एतेक नीक ई मोटका रोटी रहै अचारकेँ कोन काज | रोटी तँ खतम भए गेल | मौसी बकर-बकर ओकर मुँह तकैत रहली |
लोटन, "अच्छा आब हम जाइ छी, घर देख लेलीयै फेर मधुबनी एलहुँ तँ अहाँ लग जरुर आएब, मुदा हाँ एहने नीकगर मोटका रोटी बनेने रहब " ई कहैत मौसीकेँ गोर लागि लोटन गोली जकाँ बाहर आबि गेल | मुदा बाहर एला बाद मौसीक दयनीय हालत देखि ओकर दुनू आँखिसँ नोरक धार बहैत रहै |
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जगदानन्द झा 'मनु'
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