Monday, August 5, 2013

बज्जर खसै

131. बज्जर खसौ

दू टा सखी बड दिन बाद मिल रलह छलीह ।एकटा सखीक देहपर दामिल कपड़ा आ दोसरक देहपर साधारण साड़ी छलै ।पहिल सखी बाजल "सखी, तोरा तँ मौजे-मौजा छौ ।घरबलाकेँ सरकारी नोकरीमे लाइफ स्टाइल तँ बढ़िये ने जाइ छै ।"
दोसर सखी उदास मोने उत्तर देलक "गै सखी, हम मौजमे रहितियै तँ हमरो देहपर तोरे सन चमकौआ बनारसी रहितै ।"
"हमर मरद तँ प्राइभेटेमे अछि तैयो मोन खोलि कऽ खर्च करैत छथि ।दरमाहाक तीसो हजार खर्च कऽ दैत छथि ।"
"एँ गै, तोहर ओझा तीस कमाइ छथुन आ हमर सैयाँकेँ तँ सरकारीयोमे बीस नै पुरैत छन्हि ।मजा तँ तोरे छौ ।हमर मरद खर्चे नै करैत छथि ।कहैत छथि जे बुढ़ारी लेल जोगा कऽ राखब ।"
पहिल सखी उपहास करैत बाजल "दुर बताहि, जुआनीमे माँटि चटनाइ आ बुढ़ारीमे घी पिनाइ नीक नै ।तोहर पाठक जी एहन कंजूस मरद आ सरकारी नोकरपर बज्जर खसौ ।हमरे नीक अछि ।"
पहिल सखीक बात दोसरक करेजमे काँट जकाँ गड़ि गेल, मुदा कने कालक बाद ओकर बात सत्य लागल लागलै दोसर सखीकेँ ।

अमित मिश्र

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