Thursday, August 1, 2013

सादा कागज

जाँत पीसैत दूटा सासु एक दोसरसँ-
“यै बहिन हिनकर पुतहु तँ हीरा छनि हीरा। आइ दू बर्खमे किएक एक्को बेर ऊँच बोलो सुनने हेबनि।”
“हिनको पुतहु कोनो कम नहि छनि, एतेक काजुल पूरा घरकेँ सम्हारि लेलकनि।”
“धूर जाउत ! हिनका तँ सभ अपने जकाँ लगैत छनि ।”
“हाँ, ओनाहितो जखन एकटा नव कनियाँ अपन माए-बाप, घर-घराड़ी छोरि कए एकटा नव घर आबैत छै तखन ओ  सादा कागज जकाँ होएत छैक, जाहिपर जे रंग लगेबै ओहे रंग लगतै। आगू रंग लगाबै बलाक इक्षा।”  

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