151. गारि
वातावरणमे शहनाईक मधुर स्वर कंपित भऽ रहल छल ।आँगनमे नव कनियाँकेँ ससुर द्वारा साड़ी, गहना देल जा रहल छल ।तखने लड़ाकक भाएकेँ निशाना बनबैत लड़कीक बहिन गारि युक्त गीत गेनाइ शुरू केलक "मुँहझौंसा भैंसूर एखनेसँ आँखि किए मारै छै
बहसल माएक बेटा बापेकेँ गरियाबै छै..."एकर आगूक पाँति तेहन छल जे सुननाइयो पाप बुझाएत ।एते सूनिते लड़काक जेठ भाइ पिनकि गेल "एँ यै अहाँक लाज-धाख नै अछि ।माए-बापक आगू बिख्खिन-बिख्खिन गारि पढ़ै छी. . .डोबरीमे डूबि नै जा होइये ?"
प्रश्न सूनि लड़कीयो पक्ष तावमे आबि गेल ।लड़कीक माए बाजली "यौ पाहुन एते पिनकै किए छी ?ई तँ परम्परा अछि ।एतुका अशीर्वादी बूझि लिअ ।"
सारि सब बाजल "ई बुझू जे खाली छोटका गारि पढ़ैलौं ।हमरा तँ बड़को आबैत अछि ।हे लिअ . . .चंडलबा भैंसूर बहिने संग सू . . ."
"चुप . . .एकदम चुप भऽ जो ।"लड़का वेदीसँ उठि गेल आ गेठी खोलैत तमासे थरथराइत बाजल"जकर छोट बहिन एते निर्लज्ज हेतै ओकर बड़कीयो तँ तेहने हेतै ।तूँ सब भाइ बहिनक पवित्र रिश्तापर करिखा पोति देलें ।हम वियाहसँ एखने मुक्त होबऽ चाहैत छी । . . .एहने बज्जर सन बोल चलते तोहर सभक इज्जत घटैत-घटैत एक दिन लुटा जाइ छौ ।परम्पराकेँ तूँ सब अधर्मक ठिकाना बना लेने छें ।मैथिलक गारि तखने धरि नीक लागैत छै जखन धरि ओ अश्लीलताक बान्ह नै तोड़ै छै . . .हम जाइ छी ...अपन बहिनक सींथ पखारि अपने हाथे सिनूरा दिहें ।"एते कहि लड़का गेठी खोलि आँगनसँ बाहर निकलि गेल ।घरबैया पाथरक मूर्ती जकाँ कींकर्तव्यविमूढ ठाढ़ रहि गेलाह ।
अमित मिश्र
Sunday, September 29, 2013
Friday, September 27, 2013
जनता लेल
150. जनता लेल
"बाप रे बाप, आब ऐ गाममे रहनाइ कठिन छै ।यौ मुखिया जी आब किछु करियौ ।डेगे डेगे दारूक दोकान नाकमे दम कऽ देलक अछि ।" गौआँक बाद सूनि मुखिया जीक माँथपर चिन्ता चेन्ह झलकि उठल ।"अहाँ सब ठीके कहै छी ।जनी-जातिकेँ बाहर निकलनाइ मोसकिल भऽ गेल अछि ।अहाँ सब निश्चिन्त रहू ।परसू एकर मंत्रीसँ बात करबै ।" मुखियाक बात सूनि सब घर चलि गेल ।
कते पैरवी लगेलाक बाद मंत्रीसँ भेंट करबाक अवसर भेटलनि ।मंत्री जीक आगूमे दारूक बोतल पसरल छल आ हुनक सेक्रेटरी कामुक अंदाजमे दारू परसि रहल छल ।मुखिया जी मंत्रीक अभिवादन करैत कहलनि "मंत्री जी गाममे दारूक दोकान बढ़ि गेल अछि ।एहिसँ जनताकेँ दिक्कत होइ छै तेँ सबटा दोकान बन्द करबा दियौ ।भरि प्रखण्डमे मात्र एकटा दोकान खोलबाक आदेश दऽ जनतापर रहम करियौ ।"एते कहैत-कहैत दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भऽ गेलनि मुखिया जी ।गीलासक दारू पीलाक बाद एक बक्कुटा काजू मुँहमे ठुसलक मंत्री आ बाजल " ई क्या बोल रहा है वे !साला बुढ़ा होते हीं सठिया गया है ।ई क्या तब से जनता-जनता लगा रखा है ।आबे तेरे को पता नहीं है, ये सब जनता के लिए हीं खोलबाये हैं ।" मुखिया जीक समझमे किछु नै एलनि ।मंत्री बजनाइ चालू राखलक "अबे जितना ज्यादा दारू बिकेगा उतना ज्यादा टैक्स आयेगा ।जितना ज्यादा टैक्स होगा उतना ज्यादा खर्चा तेरे जनता के सुविधा के लिए कर सकते हैं ।समझा ना ?अब फुट यहाँ से ।अभी तो और दुकान खुलेगा जनता के लिए ।"
मंत्रीक समीकरण सूनि मुखिया जी अवाक् रहि गेलाह ।सोचि रहल छलाह जे जनता लेल जे हानिकारक छै कोना लाभदायक भऽ जेतै जनता लेल ....?
*अपनेक आशिर्वादसँ आइ 150म विहनि(लघु) कथा लिखलौं ।हमरा संग अहाँकेँ ई यात्रा केहन लागल से जरूर बताएब ।
अमित मिश्र
"बाप रे बाप, आब ऐ गाममे रहनाइ कठिन छै ।यौ मुखिया जी आब किछु करियौ ।डेगे डेगे दारूक दोकान नाकमे दम कऽ देलक अछि ।" गौआँक बाद सूनि मुखिया जीक माँथपर चिन्ता चेन्ह झलकि उठल ।"अहाँ सब ठीके कहै छी ।जनी-जातिकेँ बाहर निकलनाइ मोसकिल भऽ गेल अछि ।अहाँ सब निश्चिन्त रहू ।परसू एकर मंत्रीसँ बात करबै ।" मुखियाक बात सूनि सब घर चलि गेल ।
कते पैरवी लगेलाक बाद मंत्रीसँ भेंट करबाक अवसर भेटलनि ।मंत्री जीक आगूमे दारूक बोतल पसरल छल आ हुनक सेक्रेटरी कामुक अंदाजमे दारू परसि रहल छल ।मुखिया जी मंत्रीक अभिवादन करैत कहलनि "मंत्री जी गाममे दारूक दोकान बढ़ि गेल अछि ।एहिसँ जनताकेँ दिक्कत होइ छै तेँ सबटा दोकान बन्द करबा दियौ ।भरि प्रखण्डमे मात्र एकटा दोकान खोलबाक आदेश दऽ जनतापर रहम करियौ ।"एते कहैत-कहैत दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भऽ गेलनि मुखिया जी ।गीलासक दारू पीलाक बाद एक बक्कुटा काजू मुँहमे ठुसलक मंत्री आ बाजल " ई क्या बोल रहा है वे !साला बुढ़ा होते हीं सठिया गया है ।ई क्या तब से जनता-जनता लगा रखा है ।आबे तेरे को पता नहीं है, ये सब जनता के लिए हीं खोलबाये हैं ।" मुखिया जीक समझमे किछु नै एलनि ।मंत्री बजनाइ चालू राखलक "अबे जितना ज्यादा दारू बिकेगा उतना ज्यादा टैक्स आयेगा ।जितना ज्यादा टैक्स होगा उतना ज्यादा खर्चा तेरे जनता के सुविधा के लिए कर सकते हैं ।समझा ना ?अब फुट यहाँ से ।अभी तो और दुकान खुलेगा जनता के लिए ।"
मंत्रीक समीकरण सूनि मुखिया जी अवाक् रहि गेलाह ।सोचि रहल छलाह जे जनता लेल जे हानिकारक छै कोना लाभदायक भऽ जेतै जनता लेल ....?
*अपनेक आशिर्वादसँ आइ 150म विहनि(लघु) कथा लिखलौं ।हमरा संग अहाँकेँ ई यात्रा केहन लागल से जरूर बताएब ।
अमित मिश्र
Wednesday, September 25, 2013
कारण
149. कारण
चारि टा महिला एक्कै ठाम बैसल बतियाइत छल ।एकटा महिला कने बुढ़ छलै ।दोसर जुआने छल ।तेसर चारिम अधवयसु छल ।तेसर महिला बुढ़ियाकेँ पुछलकै "एँ यै अहाँक कए टा ढेनमा-ढेनमी अछि ?"
ओ उत्तर देलकै "भगवानक दयासँ नौ टा बेटी आ सबसँ जेठ एकटा बेटा अछि ।"
बुढ़ियाक बाद सूनि चारिम महिला कहलकै "बाप रे बाप ! अहाँ आदमी छी वा मशीन !दस दस टा बच्चा कोना जनमाएल भेल!"
ई सूनि जुअनकी बाजलै "आहि रे वा, ई कोनो चोरी केलखिन हें ।बेटीक घटैत संख्याँ देख बेटी जनमा कऽ समाजक उपकार केलखिन हें ।"
तेसरकी मुँह बिचकाबैत बाजल "एँ यै अहाँक दिमाग-तिमाग घुसकि गेल अछि ? जखन एकटा बेटा भइये गेल तखन नौ टा बेटी जनमेबाक कोन बेगरता छल ?"
एकर बात सब अपन-अपन तर्क बुढ़ियाँकेँ सुनबऽ लागल ।अन्तमे बुढ़िया सबकेँ चुप करेलक आ बाजल "अहाँ सभक चिन्ता हम दूर कऽ दैत छी ।आजुक बेटाक कोन ठेकान, कखन की करत ? जँ बेटा गंजन करत तँ बेटीक शरण लेब तें बेटी जनमेबाक बेगरता छल । संगहिं एकै टा बेटीपर बोझ नै बनी तेँ नौ टाकेँ जनमेलौं ।बुझलियै ने ?"
बुढ़ियाँक फरिछाएल गणित आ बेटी जनमेबाक कारण सूनि सब अवाक् छल ।
अमित मिश्र
चारि टा महिला एक्कै ठाम बैसल बतियाइत छल ।एकटा महिला कने बुढ़ छलै ।दोसर जुआने छल ।तेसर चारिम अधवयसु छल ।तेसर महिला बुढ़ियाकेँ पुछलकै "एँ यै अहाँक कए टा ढेनमा-ढेनमी अछि ?"
ओ उत्तर देलकै "भगवानक दयासँ नौ टा बेटी आ सबसँ जेठ एकटा बेटा अछि ।"
बुढ़ियाक बाद सूनि चारिम महिला कहलकै "बाप रे बाप ! अहाँ आदमी छी वा मशीन !दस दस टा बच्चा कोना जनमाएल भेल!"
ई सूनि जुअनकी बाजलै "आहि रे वा, ई कोनो चोरी केलखिन हें ।बेटीक घटैत संख्याँ देख बेटी जनमा कऽ समाजक उपकार केलखिन हें ।"
तेसरकी मुँह बिचकाबैत बाजल "एँ यै अहाँक दिमाग-तिमाग घुसकि गेल अछि ? जखन एकटा बेटा भइये गेल तखन नौ टा बेटी जनमेबाक कोन बेगरता छल ?"
एकर बात सब अपन-अपन तर्क बुढ़ियाँकेँ सुनबऽ लागल ।अन्तमे बुढ़िया सबकेँ चुप करेलक आ बाजल "अहाँ सभक चिन्ता हम दूर कऽ दैत छी ।आजुक बेटाक कोन ठेकान, कखन की करत ? जँ बेटा गंजन करत तँ बेटीक शरण लेब तें बेटी जनमेबाक बेगरता छल । संगहिं एकै टा बेटीपर बोझ नै बनी तेँ नौ टाकेँ जनमेलौं ।बुझलियै ने ?"
बुढ़ियाँक फरिछाएल गणित आ बेटी जनमेबाक कारण सूनि सब अवाक् छल ।
अमित मिश्र
Sunday, September 22, 2013
उतरी
147. उतरी
कस्सम कस डिब्बामे समान राखै बला जगहपर बैसल छलै बुधना ।देहपर मात्र उजरा धोरी आ कान्हसँ डाँर धरि पसरल उजरा उतरी बुधनाक उदास मुँहकेँ बेसी उदास बनबै छलै ।पटनामे रिक्शा चला कऽ कनियाँ संग गुजारा करैत छल ।किछु दिन पहिने कनियाँक मोन खराब भेलै आ काल्हि स्वर्गवासी भऽ गेलै ।गंगाक कोरामे लहास राखि अपन गाम दिश चलि देलकै ।बाटमे सोचि रहल छल जे गाम गेलापर दियाद-बाद श्राद्ध करै लेल कहत, भोज लेल तंग करत, खर्चा कतऽसँ एतै ? ।जँ कर्जो लेबै तँ मालिकक गुलाम बनऽ पड़त ।कोनो जोगार कएल जाइ जाहिसँ मरबात पते नै चलै ।सोचैत-सोचैत घामे-पसीने भऽ गेल ।ट्रेनक खिड़कीसँ देखल जे ट्रेन गंगा नदीक उपर छै ।देखिते उपरसँ नीचा आएल आ उतरी खोली गंगामे फेक देलकै ।हाथ झाड़ि अपन जगहपर बैस रहल ।आब निश्चिन्त छल जे आब ओकरा गुलामी नै करऽ पड़तै ।
अमित मिश्र
कस्सम कस डिब्बामे समान राखै बला जगहपर बैसल छलै बुधना ।देहपर मात्र उजरा धोरी आ कान्हसँ डाँर धरि पसरल उजरा उतरी बुधनाक उदास मुँहकेँ बेसी उदास बनबै छलै ।पटनामे रिक्शा चला कऽ कनियाँ संग गुजारा करैत छल ।किछु दिन पहिने कनियाँक मोन खराब भेलै आ काल्हि स्वर्गवासी भऽ गेलै ।गंगाक कोरामे लहास राखि अपन गाम दिश चलि देलकै ।बाटमे सोचि रहल छल जे गाम गेलापर दियाद-बाद श्राद्ध करै लेल कहत, भोज लेल तंग करत, खर्चा कतऽसँ एतै ? ।जँ कर्जो लेबै तँ मालिकक गुलाम बनऽ पड़त ।कोनो जोगार कएल जाइ जाहिसँ मरबात पते नै चलै ।सोचैत-सोचैत घामे-पसीने भऽ गेल ।ट्रेनक खिड़कीसँ देखल जे ट्रेन गंगा नदीक उपर छै ।देखिते उपरसँ नीचा आएल आ उतरी खोली गंगामे फेक देलकै ।हाथ झाड़ि अपन जगहपर बैस रहल ।आब निश्चिन्त छल जे आब ओकरा गुलामी नै करऽ पड़तै ।
अमित मिश्र
Saturday, September 21, 2013
चन्दा असूली
148. चन्दा असूली
गामक गुण्डा सह कथित नेता सब मार मार कऽ दौड़लै हेडमास्टरपर "रौ सार...तूँ चन्दा नै देबहीं !साले एतै भूँइयाँमे गाड़ि देबौ ।"
हेडमास्टर सिरसियाइत बाजल "हम कतऽसँ देब ?नियोजित मास्टरकेँ पाइये नै भेटै छै ।हम नै देब ।"
भीड़ कनफुसकी आ चलि गेलै ।चलैत बेर कहलकै "हिसाब तँ बराबर भैये जेतै ।"
अगिले भोर इस्कूलक नव निर्मित भवनक एकटा देबाल खसि पड़ल छलै ।फेर सब मिल हंगामा करऽ लागल ।बैमानीक आरोप लगबऽ लगलै ।इमानदार हेडमास्टरक माँथ लेजे झूकि गेल छलै ।सब नेता मिल बैसार केलक आ हेडमास्टरकेँ एक लाख टाकाक आर्थिक दण्ड देल गेलै आ कहल गेलै जे दण्डक राशि मंदीरक खातामे जेतै।अपन बचल-खूचल इज्जत बचेबाक लेल आ बात दबेबाक लेल दण्ड स्वीकार कएल गेलै ।भवन निर्माण बला पाइसँ एक लाख दऽ देल गेलै आ भवनक समानमे कटौती कऽ क्षति-पूर्ती कएल गेलै ।अगिले दिनसँ गामक दारू दोकानपर नेता सभक चहल-पहल बढ़ि गेल छलै ।परिसरमे ठाढ़ गुणवत्ताहीन भवन आ नेता एक दोसरक मूँह दूसि रहल छलै ।
अमित मिश्र
गामक गुण्डा सह कथित नेता सब मार मार कऽ दौड़लै हेडमास्टरपर "रौ सार...तूँ चन्दा नै देबहीं !साले एतै भूँइयाँमे गाड़ि देबौ ।"
हेडमास्टर सिरसियाइत बाजल "हम कतऽसँ देब ?नियोजित मास्टरकेँ पाइये नै भेटै छै ।हम नै देब ।"
भीड़ कनफुसकी आ चलि गेलै ।चलैत बेर कहलकै "हिसाब तँ बराबर भैये जेतै ।"
अगिले भोर इस्कूलक नव निर्मित भवनक एकटा देबाल खसि पड़ल छलै ।फेर सब मिल हंगामा करऽ लागल ।बैमानीक आरोप लगबऽ लगलै ।इमानदार हेडमास्टरक माँथ लेजे झूकि गेल छलै ।सब नेता मिल बैसार केलक आ हेडमास्टरकेँ एक लाख टाकाक आर्थिक दण्ड देल गेलै आ कहल गेलै जे दण्डक राशि मंदीरक खातामे जेतै।अपन बचल-खूचल इज्जत बचेबाक लेल आ बात दबेबाक लेल दण्ड स्वीकार कएल गेलै ।भवन निर्माण बला पाइसँ एक लाख दऽ देल गेलै आ भवनक समानमे कटौती कऽ क्षति-पूर्ती कएल गेलै ।अगिले दिनसँ गामक दारू दोकानपर नेता सभक चहल-पहल बढ़ि गेल छलै ।परिसरमे ठाढ़ गुणवत्ताहीन भवन आ नेता एक दोसरक मूँह दूसि रहल छलै ।
अमित मिश्र
Tuesday, September 17, 2013
श्रद्धांजलि
145. श्रद्धांजलि
सुगिया संग भगवानक बेबहार नीक नै रहल अछि ।जुआनि चढ़िते जमीनदारक प्रकोपसँ जुआनि उतरि गेलनि ।इलाका भरिमे बदनाम भऽ गेली ।किओ वियाह करबाक लेल तैयार नै छल ।माए-बाप लेल भरिगर बोझ बनि गेल छली आ गामक लेल कुलटा, कुलछनी, राक्षसनी...जानि नै और कते उपमासँ सुशोभित छली ।थाकि हारि कऽ अपनासँ छोट जातिक दूत्ती बरसँ वियाहि लेलनि ।अपन सम्बन्धीसँ बारल सुगनी माँगि-चाँगि कऽ गुजारा करैत गामक बाहरे खोपड़ि बनेने छलीह ।समय बितैत गेलै ।समयक डाँग फेर लागलै आ बाँझिनक उपमा भेंटि गेलनि ।आइ अस्सी वर्षक बाद खोपड़िक बाहर हँकमैत-खोखसैत बैसल सुगनी अपन अन्त समयक बात सोचैत छलीह "हमरा तँ किओ अछिए नै ।हमरा पाँच काठी के देत? हमर श्राद्ध के करत ?" एहने सन प्रश्न देहमे बचल शक्तिकेँ गिलने जा रहल छल ।सोचिते छलथि की किओ पएर छुलकनि ।ओ उपर देखलनि तँ एकटा युवक ठाढ़ छल ।सुगनी अकबका गेली ।परिचयक बाद पता चलल जे ओ युवक सुगनीक छोट भाएक पोता अछि ।सुगनी हाथ-पएर समेटऽ लागली तँ ओ युवक बाजल "गै दादी, तूँ एना नै कर ।हमहूँ तँ तोरे खानदानक छियौ ।बाबा-परबाबा तोरा बारि देलकौ मुदा हम तँ अपनेबौ ।एँ गै आजुक जमानामे ककरो बारल नै, अपनाएल जाइ छै ।" एते कहि युवक सुगनीक बगलमे बैस रहल ।सुगनीक दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर बहऽ लागल ।ओकरा अपन चितापर पाँच काठी पड़ैत देखाए लागलै ।चितापर जिनगी भरिक दुख आ अपमान धू-धू कऽ जरि रहल छल ।सुगनीकेँ जीबिते सबसँ पैघ श्रद्धांजलि भेंटि गेल छलै ।
अमित मिश्र
सुगिया संग भगवानक बेबहार नीक नै रहल अछि ।जुआनि चढ़िते जमीनदारक प्रकोपसँ जुआनि उतरि गेलनि ।इलाका भरिमे बदनाम भऽ गेली ।किओ वियाह करबाक लेल तैयार नै छल ।माए-बाप लेल भरिगर बोझ बनि गेल छली आ गामक लेल कुलटा, कुलछनी, राक्षसनी...जानि नै और कते उपमासँ सुशोभित छली ।थाकि हारि कऽ अपनासँ छोट जातिक दूत्ती बरसँ वियाहि लेलनि ।अपन सम्बन्धीसँ बारल सुगनी माँगि-चाँगि कऽ गुजारा करैत गामक बाहरे खोपड़ि बनेने छलीह ।समय बितैत गेलै ।समयक डाँग फेर लागलै आ बाँझिनक उपमा भेंटि गेलनि ।आइ अस्सी वर्षक बाद खोपड़िक बाहर हँकमैत-खोखसैत बैसल सुगनी अपन अन्त समयक बात सोचैत छलीह "हमरा तँ किओ अछिए नै ।हमरा पाँच काठी के देत? हमर श्राद्ध के करत ?" एहने सन प्रश्न देहमे बचल शक्तिकेँ गिलने जा रहल छल ।सोचिते छलथि की किओ पएर छुलकनि ।ओ उपर देखलनि तँ एकटा युवक ठाढ़ छल ।सुगनी अकबका गेली ।परिचयक बाद पता चलल जे ओ युवक सुगनीक छोट भाएक पोता अछि ।सुगनी हाथ-पएर समेटऽ लागली तँ ओ युवक बाजल "गै दादी, तूँ एना नै कर ।हमहूँ तँ तोरे खानदानक छियौ ।बाबा-परबाबा तोरा बारि देलकौ मुदा हम तँ अपनेबौ ।एँ गै आजुक जमानामे ककरो बारल नै, अपनाएल जाइ छै ।" एते कहि युवक सुगनीक बगलमे बैस रहल ।सुगनीक दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर बहऽ लागल ।ओकरा अपन चितापर पाँच काठी पड़ैत देखाए लागलै ।चितापर जिनगी भरिक दुख आ अपमान धू-धू कऽ जरि रहल छल ।सुगनीकेँ जीबिते सबसँ पैघ श्रद्धांजलि भेंटि गेल छलै ।
अमित मिश्र
Monday, September 16, 2013
इनारक बेंग
142. इनारक बेंग
-आठ हजार टाका ब्याज भेलौ, बिल्टुआ ।दू हजार मूल अलगसँ... ।
-यौ महाजन, ई तँ बड बेसी भेलै !एक वर्षमे चौगुणा ब्याज !
-दुर बुड़ि, इनारक बेंग जकाँ गामे भरिमे जिनगी बितलौ ।कने बाहर जा देखही, कते मँहगी छै ।
-हँ यौ सरकार, हम इनारक बेंग छी तँ अहाँ की छी ?अहाँ तँ घरेमे नुरिआएल रहैत छी तेँ ने विकासक बारेमे पता नै अछि ।दुनियाँ बड तरक्की कऽ गेलै ।आब किओ मुर्ख नै छै जे अहाँ ठकि लेबै ।हमर पोता जोड़ि देलक हेँ ।दू सए ब्याज हएत, काटि लिअ. . . ।
अमित मिश्र
-आठ हजार टाका ब्याज भेलौ, बिल्टुआ ।दू हजार मूल अलगसँ... ।
-यौ महाजन, ई तँ बड बेसी भेलै !एक वर्षमे चौगुणा ब्याज !
-दुर बुड़ि, इनारक बेंग जकाँ गामे भरिमे जिनगी बितलौ ।कने बाहर जा देखही, कते मँहगी छै ।
-हँ यौ सरकार, हम इनारक बेंग छी तँ अहाँ की छी ?अहाँ तँ घरेमे नुरिआएल रहैत छी तेँ ने विकासक बारेमे पता नै अछि ।दुनियाँ बड तरक्की कऽ गेलै ।आब किओ मुर्ख नै छै जे अहाँ ठकि लेबै ।हमर पोता जोड़ि देलक हेँ ।दू सए ब्याज हएत, काटि लिअ. . . ।
अमित मिश्र
Saturday, September 14, 2013
भगवानकेँ जे नीक लगनि
बाबा भोलेनाथक विशाल मन्दिर।
मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक कए भक्त
सभ अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा दिस
धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, “कर्पुर गौरं करुणावतारं....” सुना कए चलि गेला।
दोसर भक्त आबि, “नमामी शमसान निर्वा.....” सुनाबए लगला। एनाहिते आन आन भक्त सभ सेहो किछु ने किछु
मन्त्र श्लोक प्राथनासँ बाबा भोलेनाथकेँ मनाबेएमे लागल। ई सभ देख सुनि ओहि नेनाक
वाल मोन सोचए लागल, “हम की सुनाबू ? हमरा
तँ किछु नहि अबैत अछि ? कोनो बात नहि एलहुँ तँ किछु नहि किछु सुनाएब तँ जरुर।"
ई सोचैत नेना अप्पन दुनू कल
जोरि, आँखि मुनि धियानक मुदरामे पढ़ लागल, “अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ..........”
नेनाकेँ ई पढ़ैत देख पुजारी
बाबासँ नहि रहल गेलनि। ओ कनीक काल धियानसँ सुनला बाद नेना सँ पूछि बैसला, “बौआ ई अ आ किएक पढ़ि रहल छी ?”
“जकरा देखू किछु ने किछु मन्त्र पढ़ि कए जाइए, हमरा तँ
अओर किछु अबिते नहि अछि, तेँ अ आ पढ़ि रहल छी। भगवानकेँ जे नीक लगनि एहिमे सँ छाँति
लेता।” मुर्तीकार
144. मुर्तीकार
गाममे प्रतिस्पर्धाक माहौल बनल छल ।सटले-सटले दू टा गुट दुर्गा पूजाक तैयारीमे जुटल छल ।मुर्तीसँ लऽ कऽ पंडाल धरि नीक बनेबाक लेल दुनू गुट मेहनत कऽ रहल छलै ।दुनू एक्कै टा मुर्तीकारकेँ प्रतिमा बनेबाक लेल नियुक्त केने छल आ एक रंग मुर्ती बनेबाक निर्देश देने छल ।जखन मुर्ती बनि कऽ तैयार भऽ गेल तँ दुनू गुट मुर्ती देखबाक लेल पहुँचल ।मुर्ती देखलाक बाद दुनू मुर्तीकारकेँ गंजन करऽ लागल किए तँ दुनू मुर्ती एक दोसरसँ भिन्न छल ।दुनूमे बढ़ियाँ कोन ?ककरो किछु फुराइत नै छलै तेँ दुनू गुटमे झगड़ा शुरू भऽ गेल । ई देख मुर्तीकार बाजल"औ जी, अहाँ सब किए झगड़ैत छी ?सबसँ पैघ मुर्तीकार तँ भगवान छथि ।सब किओ हुनका पूजै छथि तखनो सभक मुँह-कान भिन्न रहैत छै ।दू टा मानव कखनो समान नै होइत छै ।फेर कहू, हमर मुर्ती कोना समान रहितय ।जखन धरि अहाँ सब झगड़ैत रहब, मुर्ती भिन्ने लागत ।झगड़ा छोड़ि दियौ, फेर देखियौ, मुर्तीमे भिन्नता खतम भऽ जाएत ।सब दुर्गे जी देखाइ देताह ।"
दुनू गुट शान्त भऽ गेल छल ।
अमित मिश्र
गाममे प्रतिस्पर्धाक माहौल बनल छल ।सटले-सटले दू टा गुट दुर्गा पूजाक तैयारीमे जुटल छल ।मुर्तीसँ लऽ कऽ पंडाल धरि नीक बनेबाक लेल दुनू गुट मेहनत कऽ रहल छलै ।दुनू एक्कै टा मुर्तीकारकेँ प्रतिमा बनेबाक लेल नियुक्त केने छल आ एक रंग मुर्ती बनेबाक निर्देश देने छल ।जखन मुर्ती बनि कऽ तैयार भऽ गेल तँ दुनू गुट मुर्ती देखबाक लेल पहुँचल ।मुर्ती देखलाक बाद दुनू मुर्तीकारकेँ गंजन करऽ लागल किए तँ दुनू मुर्ती एक दोसरसँ भिन्न छल ।दुनूमे बढ़ियाँ कोन ?ककरो किछु फुराइत नै छलै तेँ दुनू गुटमे झगड़ा शुरू भऽ गेल । ई देख मुर्तीकार बाजल"औ जी, अहाँ सब किए झगड़ैत छी ?सबसँ पैघ मुर्तीकार तँ भगवान छथि ।सब किओ हुनका पूजै छथि तखनो सभक मुँह-कान भिन्न रहैत छै ।दू टा मानव कखनो समान नै होइत छै ।फेर कहू, हमर मुर्ती कोना समान रहितय ।जखन धरि अहाँ सब झगड़ैत रहब, मुर्ती भिन्ने लागत ।झगड़ा छोड़ि दियौ, फेर देखियौ, मुर्तीमे भिन्नता खतम भऽ जाएत ।सब दुर्गे जी देखाइ देताह ।"
दुनू गुट शान्त भऽ गेल छल ।
अमित मिश्र
Friday, September 13, 2013
वाह !वाह !
143. वाह! वाह!
जादोपुर ।बड पिछड़ल गाम छल ।महिलाक बाजब सुननाइ कठिन छल ।महिला घरेमे रहैत छली ।शिक्षाक गाड़ी एखनो ओतऽ धरि नीक जकाँ नै पहुँचल छल ।सर्व शिक्षा अभियान किछु काज केलक, फलस्वरूप शिक्षामे सुधार भऽ रहल छल ।आठ वर्ष बाद गामक चौकपर बैसल छलौं ।भोरका समय छल ।नेना सब इस्कूल जा रहल छल ।एकटा तेरह-चौदह वर्षिय लड़की पीठपर बैग लादने साइकिल हाँकैत जा रहल छल ।तखने चारि टा छौड़ा ओकरा दुनू कातसँ घेर लेलकै आ अपनामे हँसी-मजाख करऽ लागलै ।लड़की तामसे लाल भऽ गेलै ।ओ बाजल" रौ बज्जर खसुआ ।बगलसँ नै जाएल जा होइ छौ ?एक्कै थापरमे होश आबि जेतौ ।" एते कही दुनू दिस पएर मारलक ।चारू छौड़ा साइकिल लेने खसि पड़ल ।महिलाकेँ सशक्त बनैत आ लड़कीक साहस देख हमरा मुँहसँ निकलि गेल" वाह ! वाह !"
अमित मिश्र
जादोपुर ।बड पिछड़ल गाम छल ।महिलाक बाजब सुननाइ कठिन छल ।महिला घरेमे रहैत छली ।शिक्षाक गाड़ी एखनो ओतऽ धरि नीक जकाँ नै पहुँचल छल ।सर्व शिक्षा अभियान किछु काज केलक, फलस्वरूप शिक्षामे सुधार भऽ रहल छल ।आठ वर्ष बाद गामक चौकपर बैसल छलौं ।भोरका समय छल ।नेना सब इस्कूल जा रहल छल ।एकटा तेरह-चौदह वर्षिय लड़की पीठपर बैग लादने साइकिल हाँकैत जा रहल छल ।तखने चारि टा छौड़ा ओकरा दुनू कातसँ घेर लेलकै आ अपनामे हँसी-मजाख करऽ लागलै ।लड़की तामसे लाल भऽ गेलै ।ओ बाजल" रौ बज्जर खसुआ ।बगलसँ नै जाएल जा होइ छौ ?एक्कै थापरमे होश आबि जेतौ ।" एते कही दुनू दिस पएर मारलक ।चारू छौड़ा साइकिल लेने खसि पड़ल ।महिलाकेँ सशक्त बनैत आ लड़कीक साहस देख हमरा मुँहसँ निकलि गेल" वाह ! वाह !"
अमित मिश्र
Wednesday, September 4, 2013
आँच
जिला अस्पताल। डा० श्रीमती
देवी सिंह। पेशेंटकेँ शुक्ष्म परिक्षण कएला बाद परिक्षण कक्षसँ बाहर आबि कुर्सीपर
बैसैत, सामने अपन कॉलेजक संगी सुधासँ, “ई कि अहाँ तँ कहलहुँ सुटीयाक वर दू वर्ख पहिने मरि गेल छै मुदा ओ तँ तीन
महिनाक गर्भसँ अछि।”
“से कोना ! हमरा तँ ओ कहलक ब्लडींग बेसी भए रहल छै, तेँ हम ओकरा लए कऽ अहाँ लग
आबि गेलहुँ नहि तँ हमरा कोन काज छल एहि पापक मोटरीकेँ लए कऽ एतए आबैकेँ।”
“से कोनो नहि, कएखनो-कएखनो कए एना हैत छैक। गर्भ रहला उतरो
संजम नहि कएलासँ ब्लडींग बेसी होइत छैक परञ्च पतिकें मुइला बादो ई गर्भ कतएसँ।”
“से की पता ई पाप कतएसँ पोइस लेलक मुदा ओकरो कि दोख बएसे की भेलैए मात्र बीस
वर्खक बएसमे ओकर घरबला छोरि कए परलोक चलि गेलै। एहिठाम पच्चपन
वर्खक पुरुखकेँ ब्याहक अधिकार छै मुदा ओहि समाजक लोक बीस वर्खक विधवाकेँ एहि
अधिकारसँ बंचित केने अछि आ जखन आँच पजरतै तँ किछु नहि किछु पकबे करतै ओ चाहे रोटी
होइ वा हाथ।”
नेतागीरी
141. नेतागीरी
-यौ नेता जी, अहाँ अपनो लोक संग विश्वासघात करै छी !
-की भेल अहाँकेँ ?
-सब दिन अहाँक आगू-पाछू हम केलौं आ मंत्रीक कुर्सी ओ नवका छौंड़ाकेँ दऽ देलियै ।
-आहि रे बा ! नेता भऽ कऽ नेतागीरी नै सिखलौं !हौ जी ओ युवा अछि ।ओकरा हाथमे भोटक भंडार छै तें ओकरा मंत्री बना देलियै ।
-मुदा...नेता जी, हम तँ अहाँ लेल कतेको ठाम मारि-दंगा करा कऽ, मशीन बदलि कऽ भोट छिनलौं, तकर कोनो मोल नै ?
-नै यौ, तकर बड मोल छै ।देखू राजनीति सदिखन अपन फायदा देखैत अछि ।ओकरा मंत्री बनेने फायदा अछि, मुदा अहाँ निचैन रहू ।किछु दिन बाद अपन बला कोनो घोटाला ओकरा माँथपर थोपि कऽ ओकरा हटा देबै आ तखन अहाँ मंत्री बनि जाएब ।हें...हें...ई भेलै नेतागीरी...हें...हें...हें...
-हें...हें...हें......।
अमित मिश्र
-यौ नेता जी, अहाँ अपनो लोक संग विश्वासघात करै छी !
-की भेल अहाँकेँ ?
-सब दिन अहाँक आगू-पाछू हम केलौं आ मंत्रीक कुर्सी ओ नवका छौंड़ाकेँ दऽ देलियै ।
-आहि रे बा ! नेता भऽ कऽ नेतागीरी नै सिखलौं !हौ जी ओ युवा अछि ।ओकरा हाथमे भोटक भंडार छै तें ओकरा मंत्री बना देलियै ।
-मुदा...नेता जी, हम तँ अहाँ लेल कतेको ठाम मारि-दंगा करा कऽ, मशीन बदलि कऽ भोट छिनलौं, तकर कोनो मोल नै ?
-नै यौ, तकर बड मोल छै ।देखू राजनीति सदिखन अपन फायदा देखैत अछि ।ओकरा मंत्री बनेने फायदा अछि, मुदा अहाँ निचैन रहू ।किछु दिन बाद अपन बला कोनो घोटाला ओकरा माँथपर थोपि कऽ ओकरा हटा देबै आ तखन अहाँ मंत्री बनि जाएब ।हें...हें...ई भेलै नेतागीरी...हें...हें...हें...
-हें...हें...हें......।
अमित मिश्र
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