Saturday, October 12, 2013

अधिकार

महानगरमे, आजुक समयानुसार एकल परिवार। सभ अपना अपनामे। एक भाँइ कतौ तँ दोसर कतौ। बाबू गाममे तँ माए किनको एक भाँइ लग। एहने परिवेश आ मकड़जालमे ओझराएल परिवारक एकटा माए अप्पन बेटासँ, ई की नी० (नी० माएक पोती) काल्हिसँ अस्पतालमे भर्ती छै आ तू सभ हमरा कहबोसँ गेलअ।
बेटा चुप्प, माए आगू, बूझलीऐ आबैक पुरसैत केकरो लग नहि छैक, कनी एकटा फ़ोनो तँ करबा चाही
बेटा, की कहितीयै ? कोनो तरहक सुख तँ हम अहाँ सबहक जीवनमे कहियो दऽ नहि पएलहुँ, दुख कहि अहाँ सबहक मोनकेँ दुखी करैक हमरा कोन अधिकार अछि।  

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