Saturday, August 4, 2012

विहनि कथा संसार- मुन्नाजी



अदौ कालसँ चलि आबि रहल अछि कहबाक परिपाटी। कहबाक लेल समाद होइ छै। मुदा ओ क्षणिक सूचना मात्रा होइछ। कहबाक बेगरताक मूलमे यदि कथ्य वा कथानक हुअए। कहबाक लेल समादक विस्तार हुअए ओ कोनो फलकपर विस्तार लऽ कहऽ बलाक पूर्ण विचारकंे संप्रेषित करए, सएह कथाक नाम पबैछ। कथा एक लोकसँ दोसरा लोक धरि एक पीढ़ीसँ दोसरा पीढ़ी धरि मौखिक रूपेँ हस्तान्तरित होइत रहल। से तहिया भेल जहिया लिखबाक जनतब वा सरंजामक अभाव छल।

कथा लेखनक प्रारम्भमे कथ्यकेँ सोझाँ-सोझी राखि देल जाइत छल। ओकर मूल बातकेँ बढ़ा-चढ़ा प्रस्तुत कएल जाइत छल, मुदा हुबहु। जेना पहिने मौखिक हल तकरे प्रतिरूप। ई प्रतिरूप समायन्तरे क्रमिक स्तरपर परिवर्तित होइत रहल। कथाक लेल अंग्रेजीमे स्टोरी शब्द अछि। आगू एकरा गढ़बाक प्रक्रिया आ पछाति मढ़बाक प्रक्रिया शुरू भेल, जे शैलीक रूपेँ सोझाँ आएल। फेर विकासक क्रमे एकरा अगिला चरणमे एकटा औसत सीमामे बान्हल जाए लागल, ओहो कथा रहल मुदा अंग्रेजी शब्द परिवर्तन कऽ नाम फरिछाएल शॉर्ट स्टोरी।

मैथिली सहित अन्यान्यो भाषामे शॉर्ट स्टोरीक शाब्दिक अर्थ लघुकथा कहि प्रारम्भ भेल छोट-छोट कथा रचना। आ ओइ लघुकथाक छोट आकारकेँ सेहो लघुकथाक नामे लिखल आ प्रकाशित कएल जाए लागल। आब लोककेँ व्यस्ततामे ई छोट-छोट कथा सोहाए लगलै। आ पाठकीय उत्साह रचनाकार मनोबल बढ़बैत आत्मविश्वासकेँ दूना केलक। परिणाम स्वरूप ध्ुरझार लिखाए लागल अतिलघुकथा।

‘लघुकथा’ अछि हिन्दी भाषासँ लेल गेल शॉर्ट स्टोरीक उधारी शब्दकोषीय अनुवाद। तकर कारण रहल-पहिल, एकटा नव विधा देखिते मैथिली रचनाकार सब देखाउँसे लिखऽ लगला छोट अकारक कथा। दोसर, जेना हिन्दी साहित्य लेखन अंग्रेजी साहित्यसँ प्रभावित हेबाक संकटसँ उबरि नै पबैए तहिना मैथिली साहित्य रचना, विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलसँ पहिने, बहुत लग धरि (पूर्णतः नै) हिन्दी साहित्य लेखनसँ आच्छादित छल। तेँ मैथिली रचनाकारकेँ कखनो एकर मैथिली शब्द जेना हिन्दीक ‘कहानी’ मैथिलीमे ‘कथा’ अछि, (हिन्दीयोमे ठाम ठीम स्टोरीकेँ ‘कथा’ शब्देँ प्रयुक्त देखल जाइए) से नै फुराएल हेतन्हि। तेँ ओ अपने अतिलघुकथाकेँ लिखैत रहलाह लघुकथा। ईहो सोलह आना सत्य अछि जे ई नव विधा जहन मैथिलीमे हस्तान्तरित भेल तखन सनातनीये अतिलघु आकार-मात्राक कथा छल । एकर विकसित रूप तँ बीसम सदीक अन्तिम दशकमे देखाए लागल। जहन कि तकनीकी शिक्षा वा व्यावसायिक शिक्षासँ लगीच एवं वैश्विक परिवर्तनसँ प्रभावित नवका लोकक नव सोच विकसित भेल।

अइ विधाक स्वतंत्र रूपक फरिछौट भेलाक पछाति बेगरता भेल ऐ विधा लेल अपन माटि-पानिसँ जुड़ल, अप्पन भाषिक शब्दक। वर्ष १९९५ मे ‘सहयात्री मंच’ लोहना, मध्ुबनीक साहित्यिक विमर्श प्रस्ताव रखलौं। जकरा हुलसैत सहृदये मैथिलीक कवि, कथाकार श्री राज द्वारा समर्थन कएल गेल। उपस्थित सम जन समवेते स्वीकार कएलनि। उपस्थित जन छलाह- श्री शैलेन्द्र आनन्द, भवनाथ भवन, कुमार राहुल, विजयानन्द हीरा, सच्चिदानन्द सच्चू एवं अन्यान्य।

विहनि कथा (सीड स्टोरी), बीज कथा; स्वयंमे कथाक पूर्ण रूप अछि विहनि कथा। ई ने छोट अकारक कथा छी, आ ने कोनो कथाक छेँट। सामान्येतया कथा कतेको बिन्दुकेँ छुबैत बिरड़ो जकाँ उधियाइत पाठककेँ अपन उद्वेश्य कहबामे सक्षम भऽ पबैए। मुदा विहनि कथा माने  बीज कथा स्वयंमे संपूर्ण कथा अछि। जे पाठककेँ एक मात्र अपने खुटापर खुटेसल सन राखि अपन उद्देश्यक पूर्णताकेँ एक क्रममे बिकछा लेखकीय मनस्थितिकेँ फरिछा दैए। आ पाठक ओइ सोचकेँ हुबहु मगजमे समा स्थिर भऽ जाइए।  

विहनि कथा एकटा बीया सन छोट की पैघ संपूर्ण गाछ हेबाक सामर्थ्य रखैए। तहिना विहनि कथा आकारेँ लघु होइतो कथाक सभ पक्ष, कथ्य, शिल्पकेँ एक खास बिन्दुपर समेटि कथाक संपूर्णता प्रदर्शित करबामे सक्षम अछि। जेना बीया पारबाक पछाति अँकुराइए, फेर दुपतिया सन देखाइत एकटा गाछक रूपमे अपन संपूर्णता पबैए तहिना विहनि कथा भूमिका, कथ्यक स्पष्टीकरणक संग सोद्देश्ये गढ़ल आ मढ़ल जाइए आ लेखकक समस्त विचारकेँ छोट आकारमे सोद्देश्यपूर्ण बना उजागर करबामे सक्षम होइए। जेना कोनो बीया अंकुरा कऽ गाछक सभ पक्ष यथा डारि, पात आदिसँ युक्त होइछ एकटा ठुट्ठ गाछ मात्र नै। तहिना विहनि कथा समस्त गुणेँ भरल-पूरल कथा छी। एहेन कथा नै जे दृष्टांत मात्र भऽ ठमकि जाए। एहेन कथा नै जकर कोनो ओर-छोड़ नै हुअए। विहनि कथा एहनो कथा नै अछि जकरा पूरा पढ़लाक पछाति लेखकक लेखन उद्देश्य बुझबाक लेल कात-करोट मुरियारी देबऽ पड़ए। एकर उद्देश्य सोझाँ सोझी फरिछाएल होइछ।

विहनि कथा लघु अकारे शुरू भेल। आइ ई लघुकायमे ओइ लघुकथाक एकटा विकसित रूप अछि जे संभवतः मैथिलीमे बीसम सदीक अन्तिम दशकमे अपन स्वतंत्र रूपक वा विधाक फरिछौट करबामे सक्षम भऽ सकल। विहनि कथाक संपूर्णताकेँ ऐ तरहँे कहल जा सकैछ- विहनि कथा कथाक संपूर्ण गुणक संग ओइसँ ऊपर उठि, अपन लघुकायमे समेटल एक निश्चित बिन्दुपर ठाढ़ भेल लेखकक उद्देश्यक पूर्ति करबाक संग पाठकक मगजक भरपूर खोराक अछि।

विहनि कथा २१म सदीमे रचनाकार, सम्पादक संग-संग पाठकक बीच सेहो फरिछाएल अछि। तकरे कारण अछि जे आब विहनि कथा छोट गातमे अपन सभ संपूर्णता नेने कागजपर उतरि सोझाँ अबैए। आबक समयमे दृष्टि विहीन नै, दृष्टि सम्पन्न रचनाकार सभ अइ विधाक विकासमे लागल छथि। तेँ ई आब नहिये चुटुक्का कहाइए आ नहिये कथाक छेँट वा दृष्टांत। हम पुनः ई स्पष्ट करैत कहब जे- विहनि कथा ठोस कथ्य, माँजल शिल्पमे कोनो विषयपर वर्णित ओ वौस्तु थिक जे पाठकक मन-मस्तिष्कपर चोट कऽ ओकरा सम्वेदित कऽ चिरकालिक छाप छोड़ि सकबामे सामर्थ्यवान होइए। विहनि कथा, मात्र गुदगुदी करैबला वा चुट्टी काटि बिसबिसी दैबला वौस्तु नै रहि गेल आब। ई रचनाकार आ पाठकक मोनमे समा स्थिर भऽ जाइ बला कथा थिक।

आजुक व्यस्त जीवन मध्य लोककेँ कखनो ओतेक पलखति नै भऽ पबै छै जे ओ आब घंटा-घंटा भरि बैसकी लगा एके रचना पढ़ि मोनकेँ सांत्वना देत। क्षण-क्षण बदलैत परिस्थिति, बदलैत छेब-छटा आ तइ हेतु अधिकसँ अधिक अर्थक जोगार मध्य कटि जाइछ लोकक जिनगी। आजुक लोककेँ मीडियासँ क्षण-क्षण नव आ रोमांचित करएबला खोराक भेटि जाइत अछि तेँ साहित्यक प्रति बहुत रूचि नै बाँचब स्वाभाविक अछि। ओना आइयो उपन्यासकेँ खूब पढ़ल जाइछ। मुदा ओकरा आम पाठक मात्रक खोराक नै कहि सकै छी। तेँ रचनाकारकेँ सेहो आब सम्हरि कऽ सशक्त आ अल्प पलखतिक बीच सामंजस्य बैसाबऽ बला रचना करब आवश्यक अछि। रचनाकार, विशेष कऽ विहनि कथाकारक ई पहिल दायित्व बनैए जे ओ समयक संग चलि पाठकक समय संग भेल व्यस्तताकेँ देखि ओज आ सरल भाषिक रचनासँ विहनि कथा संसारमे योगदान सामर्थ्य हासिल करथु।

पाठकक आजुक क्षण-क्षण बदलैत परिस्थिति मध्य विहनि कथाकारो जिबैत छथि। तँ ओ यदि आजुक बेहाल अर्थ तंत्र, मशीनी युगक मध्य लोकक मशीन सन हएब परिस्थितिकेँ गसिया कऽ पकड़थु। आ अही परिस्थितिकेँ पाठकक सोझाँ परसि कऽ पाठककेँ मजगूती देबामे अपनाकेँ सक्षम करबाक शक्ति अर्जित कऽ रचनारत रहथु। तहन विहनि कथा, विहनि कथाकार आ पाठकक मध्य सामंजस्य बैसि पाओत। पाठकक प्रत्येक क्षणक व्यस्तता, किछु नव करबाक सनक, अर्थोपार्जनक पाछाँ भगैत रहलासँ उपजल तनावसँ मुक्तिक साधन सेहो अछि विहनि कथा। पाठक जखन सभसँ विलग अल्पावधिक लेल खाली भेटल समयक उपयोग करऽ चाहैए तँ ओकर संग देबामे सक्षम अछि विहनि कथा। ऐ सभ बेगरता पूर्ति करबामे सक्षम विहनि कथा अपन फराक जगह छेकबामे सक्षम भेल अछि।

आब विहनि कथाकार जखन समय संग चलि पाठकक मनोस्थितिक अनुकूल रचना देबामे सामर्थ्यवान छथि। ओ अपन पहिल दायित्व पाठकक मोनकेँ भाँपि तदनुकूल रचनासँ पाठककेँ बन्हवामे सक्षम भेल छथि। तहन बेगरता उठै छै एकर मूल्यांकनक। वर्तमानमे एहेन कोनो दृष्टि फरिच्छ समीक्षक वा समालोचक देखार भऽ ऐ विद्यापर काज करबामे सक्षम नै भऽ पौलाह अछि। तकर ठोस कारण अछि बदलैत समय आ परिस्थिति मध्य ओहने सोचक सामंजस्य। जे स्थापित समीक्षक छथि से दू तीन दशक पछातिक नजरिये रचनाकेँ देखबाक प्रयास करताह। हुनका ऐ मे भऽ सकैए किछु नै देखाइन। कारण जे ओ सभ कथाक जइ मूलकेँ देखैत भोगैत एलाह अछि विहनि कथा ओइसँ ऊपरक सोच आ फराक शैलीमे अछि। एकर सत्य आ पूर्ण गात तहिया फरिछाएल जहिया मठाधीश समीक्षक सबहक सोच ओइ कथा, ओकर प्राचीन चरित्र मध्य सन्हिया बैसि गेल। समाजक एकटा समस्या मँहगाइ उदाहरण स्वरूप सनातनी आ चिरायु अछि। ई कहियो खत्म होइबला चीज नै अछि। मुदा तैयो एकर चरित्र आ चेहरा सीढ़ी दर सीढ़ी बदलैत रहैए। आ ओइ संग ओइ मँहगाइक प्रतिफल सेहो ओहिना बदलैत नजरि अबैए। यथा यात्रीजीक कवितामे वर्णित मँहगाइ साहित्यमे चर्चित अछि। आइ ओहेन कोनो नव ठोस रचना मँहगाइपर नै अछि। तहिया लोक भूखे मरैत छल, पेट काटि कऽ जिबैत छल। गदैली ओढ़ि सर्दी कटै छल। आजुक मँहगाइ मध्य कियो भूखे नै मरैए। आ सामान्यो वर्गक लोक कम्मल ओढ़ि आ हीटर जरा सर्दी बितबैए। की ई फर्क सनातनी समीक्षक फरिछेबामे सफल भऽ सकताह? किन्नहुँॅ नै। किएक तँ अइ बदलल स्थितिपर ध्यान देबाक पलखति कहाँ छनि। ओ तँ प्रतिक्षा करै छथि रचनाकारकेँ जुएबाक, रचना चाहे खिज्जा रहि जाउन।

कथासँ जुड़ल लोक विहनि कथा मादे विचार कऽ सकैत छलाह। मुदा हुनकर सभक दृष्टि ‘विहनि कथा’क प्रति फरिच्छ नै छनि, उदाहरणतः रंगकर्मी कुणाल, जे नाटकक संभ्रान्त, परिपक्व ज्ञाता छथि ओहो कथापर लिखबा काल विहनि कथाकेँ अस्तित्वहीन कहि बेरा दै छथि। मायानन्द मिश्र मैथिली कथा धाराक मजगूत खाम्ह छथि, ओ लघुकथा (विहनि कथा)केँ चुटुक्काक संज्ञा देलनि। माया बाबूक सोच समीचीन अछि किएक तँ ओ जइ दशकक सोचक लोक छथि तइमे लघुकथा (विहनि कथा) विद्या फरीछ नै छल। तेँ हुनको ऐ प्रति दृष्टि फरीछ नै हएब स्वाभाविक। ओ कथा विकासक आलेखमे लघुकथा (विहनि कथा)क चर्चे केलन्हि सएह बहुत अछि। [मैथिली कथाक विकास नामक आलेख, साहित्य अकादमी दिल्ली सँ प्रकाशित पोथी -‘मैथिली कथाक विकास’- सं. वासुकी नाथ झा, २००३].

विहनि कथा वा कथाकारक मूल्यांकन हेतु विहनि कथाकार स्वयं ऐ दिशामे कान्ह उठाबथि तँ सही मूल्यांकन संभव भऽ पाओत। मैथिली समीक्षाक एकटा कमजोर तत्व ईहो रहल जे ओ रचनात्मक दृष्टियेँ सड़क छाप होइत छथि। फरिछेबाक ई जे ओ अपन गुणगान मात्रा सुनऽ चाहै छथि। आलोचनामे कमी नै वाह वाही हेबाक चाही। जँ समीक्षक द्वारा हुनकर रचनात्मक दोष वा कमीकेँ उघारि सभक सोझाँ कऽ देल गेल तँ समीक्षक भऽ गेला हुनक कट्टर दुश्मन। आ तकर पछाति हुनका, रचनाकारक मुँहे, अज्ञानी, उदण्ड, स्वार्थी आदि संज्ञासँ जानए लागब। ईहो सोलह आना सत्य अछि जे मैथिली समीक्षामे किछु गोटे कृतित्वसँ पहिने व्यक्तित्वकेँ प्राथमिकता दऽ समीक्षा लिखि रइल छथि। तँ जा धरि रचनाकारमे आलोचनात्मक विचार वा कमी सहबाक सामर्थ्य नै हएत, स्वथ्य आलोचना कतऽ सँ टंाग पसारि सकत वा अपन बैसकीपर बैसि अराम कऽ सकत? ओहने किछु रचनाकार सभ द्वारा समीक्षाकेँ ओलि सधेबाक सूत्रक रूप सेहो ठाम-ठीम प्रयुक्त होइत देखाइत रहल अछि।

आजुक विहनि कथा पहिने हिन्दी भाषासँ उधारी लेल शब्द ‘लघुकथा’ नामे लिखाइत रइल। अखन धरिक मौखिक जनतब अनुसारे लघुकथा शब्द प्रयोगे छपल पहिल कथा १९६८ मे मिथिला मिहिर मे काली कुमार दास लिखित ‘बुड़िबक वर’ छल। अइसँ पहिने छेँट कथा, कटपीस कथा, मिनी कथा, फिलर कथा........आदि नामे ई छपैत रहल छल। एकर पछाति जे रचनाकार विहनि कथामे सक्रिय भेला ओ नाम अछि- डॉ हंसराज, ए. सी. दीपक, तकर पछाति लिली रे, राजमोहन झा, एम. मणिकान्त, अमरनाथ, रामलोचन ठाकुर आदि। अइ नाममे सँ बेशी गोटे विहनि कथा लिखबाक प्रयोगधर्मिता मात्रक निर्वहन केलनि। हँ एम. मणिकान्त मिथिला मिहिरक माध्यमे कतेको वर्ष धरि विहनि कथा लेखनक नियमितता बनौने रहला। मुदा दुखद वा हास्यास्पद बात ई जे वर्त्तमानमे हुनक एको टा रचना उपलब्ध नै अछि। डा. हंसराज जी क मैथिलीक पहिल विहनि कथा संग्रह ‘जे की ने से’ (प्रकाशित १९७२ ई.) मैथिली विहनि कथा पेटारक पहिल सनेस कइल जा सकैए। ऐमे हास्य व्यंग्यसँ भरल लघुकायक कुल ३५ गोट विहनि कथा संग्रहित अछि। पन्नापर अंकित वर्षक अधारे एकर सभ रचना १९६३ सँ १९७२ मध्य लिखल रचना अछि। एकर कथा सभ तत्कालीन राजनैतिक सामाजिक कुव्यवस्थापर चोट करैत लिखल गेल अछि। किछु रचना आइयो प्रासंगिक अछि। हंसराज निश्चित रूपसँ विहनि कथा आन्दोलनक बीया बाउग केलनि आ तेँ आइ विहनि कथाक गाछ झमटगर होइत देखाइए।

किछुए वर्ष पछाति हिनकर अगिला पीढ़ीक श्री अमरनाथ अपन ‘क्षणिका’ विहनि कथा संग्रह प्रस्तुत केलन्हि (वर्ष १९७५ ई. पुर्नप्रकाशन २०११ ई.) आ एकरा एक सीढ़ी आओर ऊपर लऽ जेबाक ठोस प्रयास केलनि। ऐ संग्रहक कथा सभ खलील जिब्रानक कथाक लगीच बुझाइए आ सभ बिन्दुकेँ छुबैत रचना कएल गेल बुझाइए। एकर अधिकांश रचना आइयोक समयसँ मेल खाइत बुझाइए। मुदा लेखकसँ दूरभाषिक वार्तालापक अनुसार राजहंस जकाँ हिनको कोनो रचना तत्कालीन पत्रिकामे प्रकाशित नै भऽ सोझे संग्रहित अछि।

वर्ष १९७५ विहनि कथाक स्वर्णिम शुरूआत वर्षक रूपमे देखार भेल बुझाइए जखन ‘मिथिला मिहिर’ (पाक्षिक) अपन विहनि कथा विशेषांक (लघु कथा विशेषांक नामसँ) निकालि मोकाम तँ नै मुदा बाट अवश्ये देखार केलक। ई साहसिक काज भेल कविक द्वारा ऐ नव विधाक लेल। मिथिला मिहिरक अइ विशेषांकक समय सम्पादक छलाह आदरणीय भीमनाथ झा। ओना तँ ‘अन्हरीक गाए बियेलै तँ सभ डाबा लऽ कऽ दौड़ल’ बला कहावत चरितार्थ होइत देखाएल। फेर २३ बर्ख बीति गेल। खएर! बाँझ गाए गाभिन तँ भेबे कएल.....।

कथानकक नब्जक सुन्नर पकड़ि रखनिहार श्री विभूति आनन्द जी जेबी पत्रिका ‘कुश’ क नवम अंक वर्ष-१९७८ मे पत्रिकाक गातक अनुसार छओ गोट विहनि कथाक समावेश कऽ निकाललनि विहनि कथा विशेषांक (लघुकथांक विशेषांक नामसँ)। अही वर्ष १९७८ जुलाइमे साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा कथापर आयोजित सेमिनारमे परिचित कथाकार श्री रामदेव झा, कथापर प्रसंगे विहनि (लघु) कथाकेँ शामिल कऽ एक अनुच्छेद लिखि एकर विशिष्टता जतौने छलाह। जइमे विहनि (लघु) कथाक वैश्विक पटलपर खलील जिब्रानक चर्चा आ तुलना एवं मैथिली विहनि (लघु) कथाकार मे सँ अमरनाथ जीक योगदानक चर्चा कएने छलाह।

आठम दशक विहनि कथाक संगोरसँ वंचित रहल। मुदा ई विहनि कथा लिखनिहारक एक टा पैघ हेँज तैयार केलक, जइमे प्रमुख नाम अछि- विभूति आनन्द, शैलेन्द्र आनन्द, श्रीराज, प्रेमकान्त झा, वैकुण्ठ झा, देवशंकर नवीन, प्रदीप बिहारी, ताराचन्द्र वियोगी, चण्डेश्वर खाँ आदि। ई समूह रचनाक दृष्टिये नव अँाखि पाँखिबला छल। साम्यवादी विचारसँ प्रभावित मुदा आपत कालक दुर्दशासँ प्रेरित आ पीड़ित। विहनि कथाक पहिल संग्रह १९७२ मे बहराएल दोसर १९७५ ई. मे आ तकर पछाति अकाल! किएक? २२ वर्षक एहेन खालीपन विहनि कथाक इतिहासकेँ ठमकि जेबाक लेल बाध्य केलक। एकर बाधक छलाह तत्कालीन  संपादक, सरकारी आ निजी समिति-संस्था आ प्रकाशक। मुदा तहूँसँ बेशी जिम्मेवार ऐ पीढ़ीक रचनाकार छला जे अपनाकेँ दुनू विधापर कलम चला भरमा लेलनि वा गद्यक ऐ प्रकारक उस्सर खेत देखि डरि कऽ अपनाकेँ कतिया लेलनि। अइ पीढ़ीक कतिपय रचनाकार ऐ विहनि कथा विधाक राशि नवका रचनाकार सभकेँ पकड़ा निश्चिन्त भऽ सुस्ताए लगलाह। कारण छल जे एकर फरिछाएल रूप मध्य अपन अस्तित्व वा कोनो लाभक जोगार वा प्रतिष्ठिा नै नजरि एलनि। अही बीच आएल तन्त्रनाथ झा समग्र, ओइमे सेहो किछु विहनि कथा संकलित अछि।

मैथिली साहित्यक जिरात मध्य विहनिकथाक प्रसंस्कृत बीया नव रूपे बाउग केलनि अइ पीढ़ीक नवतुरिया। जइमे नाम छल ज्योति सुनीत चौधरी, दुर्गानन्‍द मंडल, कपि‍लेश्वर राउत, धीरेन्‍द्र कुमार, राजदेव मंडल, बेचन ठाकुर, राम प्रवेश मंडल, भारत भूषण झा, मानेश्वर मनुज, उमेश मण्‍डल, जगदीश प्रसाद मण्‍डल (बाल विहनि कथा संग किछु सुन्दर विहनि कथा जेना थल-कमल/ घरडीह/ खाता-खेसरा/ सबूत/ कौआक मैनजन), रामकृष्‍ण मण्‍डल ‘छोटू', परमेश्वर कापड़ि, रघुनाथ मुखिया, ऋषि वशिष्ठ, शिव कुमार झा “टिल्लू”, मिथिलेश कुमार झा, सत्येन्द्र कुमार झा, नवनीत कुमार झा, कौशल कुमार, अनमोल झा, कुमार मनोज कश्यप, विनीत उत्पल, धनाकर  ठाकुर, आशीष अनचिन्हार, सतीश चन्द्र झा, गजेन्द्र ठाकुर, भवनाथ भवन, राम वि‍लास साहु, मुन्‍नी कामत, शंभु कुमार सिंह, संजय कुमार मंडल, मि‍थि‍लेश मंडल, लक्ष्‍मी दास, अमित मिश्र, जगदानन्द झा 'मनु', चन्दन झा, ओमप्रकाश झा, सन्दीप कुमार साफी, जवाहर लाल कश्यप, मिहिर झा, रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार, प्रेमचन्द्र पंकज, अखिलेश मंडल, अमलेन्दु शेखर पाठक, मध्ुकर भारद्वाज, श्रीधरम, देवेन्द्र झा, सच्चिदानन्द सच्चु, मिथिलेश कुमार झा, कुमार राहुल, दिलीप कुमार झा “लूटन”, मुन्नाजी आदिक। ऐ पीढ़िक समूह द्वारा विहनिकथा पर ध्ुरझार काज भेल। अइ ठामसँ असली फरिछौट भेल विहनि कथाक। आ हिन्दीक उधारी शब्द लघुकथा सँ विलग खाँटी शब्द- विहनिकथा स्थापित भेल।

बीसम सदीक अन्तिम दशकक पहिल काज भेल स्व. ए. सी. दीपक जी द्वारा ‘विविध विहनि (लघु) कथा विशेषांक (मार्च-१९९४ मे)। तकरा पछाति नवका पीढ़ी सेहो कान्हपर वीरा उठेलक आ शुरू भेल वैश्विक बदलल सामाजिक परिदृश्य, तकनीकीय भेल नव-नव क्रान्तिक संग जनमल नव अवधरणाक संग विहनि कथा लेल नव-नव काज।

१९७५ ई.मे आएल ‘क्षणिका’ क दू दशक बाद १९९५ ई. केँ विहनि कथाक स्मृतिवर्ष कहि सकैत छी। २० फरवरी १९९५ केँ मुन्नाजी एवं मलयनाथक संयोजनमे हटाढ़ रूपौली, मध्ुबनीमे आयोजित भेल विहनि कथा गोष्ठी, जकर अध्यक्षता केलनि पं यन्त्रनाथ मिश्र आ एकर मंच संचालन कुमार राहुल द्वारा भेल। ऐ अवसरपर उपस्थित विहनि कथा पाठ केनिहार छलाह- भवनाथ भवन, मलययाथ मण्डन, प्रेमचन्द्र पंकज, मुन्नाजी, शैलेन्द्र आनन्द, प्रभु कुमार मंडल, मतिनाथ मिश्र, उमाशंकर पाठक, श्यामाचन्द्र ठाकुर, कुमार राहुल, मीरा कर्ण, ललन प्रसाद, सुनील कर्ण, सच्चिदानन्द सच्चु एवं करणजी। पढ़ल गेल रचना सभपर समीक्षीय टिप्पणीकार छलाह- शैलेन्द्र आनन्द, मुन्नाजी, भवनाथ भवन एवं प्रेमचन्द्र पंकज। हमरा जनतबे विहनि कथाक ई पहिल गोष्ठी छल। ५ मार्च १९९५ केँ सहयात्री मंच लोहना, मध्ुबनी द्वारा मुन्नाजीक विहनि कथा ‘नामरद’ क एकल पाठ आ अइ पर ‘बहस’ क आयोजन कएल गेल। अइमे प्रमुख विचारक छलाह- श्रीराज, शैलेन्द्र आनन्द, विजयानन्द हीरा, भवनाथ भवन एवं प्रेमचन्द्र पंकज। हमरा जनतबे विहनि कथा आ कथाकारपर एहेन ‘बहस’ केर ई पहिल आयोजन छल। जुलाइ १९९५ मे कानपुर सँ बहराइत नवतुरिया त्रैमासिक पत्रिकाक विहनि कथा विशेषांक आएल, संपादक छलाह- प्रेमकान्त झा एवं वैकुण्ठ झा। अइमे १९ गोटेक कुल १९ गोट विहनि कथाक समायोजन छल, आ अइ विहनि कथा विधाक फरिछौट कऽ एकरा नव दिशा देखेबाक प्रयास करैत मुन्नाजीक आलेख अछि, जे कि कोनो विहनि कथा विशेषांकमे ऐ तरहक पहिल आलेख थिक। अही दशकमे प्रारम्भ भेल कथा गोष्ठी सेहो विहनि कथाक बाट बनेबा वा फरिछेबामे उत्प्रेरकक काज करैत रहल। कथा गोष्ठीक जुलाइ १९९७ क महिषीक आयोजनमे एके संग दु गोट पोथीक लोकार्पण भेल, ‘खंड-खंड जिनगी’ (प्रदीप बिहारी) आ ‘शिलालेख’ (तारानन्द वियोगी, जइमे कुल ३५ गोट रचना संकलित भेल अछि)।

२१म सदीमे समय आ परिस्थितिकेँ अकानैत सभ रचनाकार खुलि कऽ विहनिकथा दिस जुमल छथि। पत्रिकाक संपादक सभ किछु कोना अइ लेल समर्पित करऽ लगलाह। अइ नव सदीक नव सोचक पहिल विहनि कथा संग्रह आयल- ‘बुझनूक’ (२००२ ई.), एकर रचनाकार श्री वैकुण्ठ झा जी अपन ३६ गोट रचना लऽ ऐ विधाकेँ बाट देखेबाक ठोस प्रयास केलन्हि। एकर बाद तँ संग्रहक झड़ी लागि गेल बुझू। अगिला संगोर हिन्दी मैथिलीक संयुक्त रचनाकार विहनिक कथाक दिशावाहक श्री देवेशंकर नवीन जी अपना कथा संग्रह-‘हाथी चलय बजार’ (२००४ ई. मे ३१ गोट विहनि कथाक संगोर) संग उपस्थिति दर्ज करौलनि। तँ २००५ ई. मे पुरान सोचक ठोस कथाकार श्री मनमोहन झा जी अपन विहनि कथाक संगोर, मिथिलाक निशापुर मे’ आनि एकरा एक डेग आओर आगाँ बढ़ेबाक प्रयास कएलनि। एकर आमुखमे श्री विजय मिश्र जी एकरा गद्य काव्यक संज्ञा देलनि अछि। वास्तवित रूपेँ तँ गद्य काव्य, काव्यक गद्यात्मक शैली थिक। ईहो सत्य अछि जे विहनि कथा गद्य रहि कविताक पूर्णतः लगीच मानल जाइए। मुदा अइमे संकलित २४ गोट रचना विहनि कथे थिक, आन किछु नै। वर्ष २००७ मे “अहींकेँ कहै छी” (सत्येन्द्र कुमार झाक ५१ गोट विहनि कथाक संग्रह) आएल। ई संग्रह विहनि कथाक प्रति पूर्ण सोझराएल आ दृष्टि फरीछ रचना सबहक संगोर थिक। युवा पीढ़ीक बहुविध, प्रतिभा संपन्न लेखक ओ संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुर अपन रचना समग्र- कुरूक्षेत्रम् अर्न्तमनक- मे लघुकथाक संग १६ गोट ठोस आ कथ्य ओ शिल्पगते फरिछाएल विहनि कथा आनि विहनिकथा संसारमे श्रीवृद्धि केलनि अछि। अखन धरि एक लिखे चलैत विहनि कथाक लिख सँ हँटि २०१० ई. मे श्री जगदीश मण्डल जी सभसँ इतर बाल मनोवैज्ञानिक विहनि कथा संग्रह ‘तरेगन’ क संग आन रचनाकार केँ सम्मोहित केलनि। २१ म सदीक पहिल दशकक अन्तिम चरणमे मैथिली ई पाक्षिक ‘विदेह’ अइ विहनि कथाक नव इतिहास लिखबा वा बनेबामे अग्रणी मानल जाएत। अपन ६७म अंक विहनि कथा समायोजनमे देशी आ विदेशी ठोस रचनाक संगोर, एवं अइ विहनि कथाक शास्त्रीय विवेचन कऽ अएना स्वरूप झलका एकर बाटकेँ मोकामक लगीच अनबामे ई पूर्णतः सफल भेल अछि। अइ अंकमे कुल ३२ रचनाकारक ७९ गोट रचना अइ विधाकेँ पूर्णतः फरिछा, सभक सोझाँ अनबामे सौ प्रतिशत सक्षम भऽ देखार भेल अछि। संपादकक अलाबे एकर सफलताक श्रेय छन्हि अइ अंकक अतिथि संपादक-मुन्नाजीकेँ। मुन्नाजी जी बड गम्भीरता पूर्वक सभक समायोजन एवं अपन आलेखेँ दोसरो रचननात्मक प्रकृतिकेँ फरिछेबाक सफल प्रयास केलनि अछि।

लगभग दू दशकसँ अइ विधामे रचनात्मक उपस्थिति दर्ज करबैत रहलाह, आ परिणाम “समय साक्षी थिक” २०११ मे आएल, ई संग्रह श्री अनमोल झा जीक कुल १५० रचनाक अपन जिनगीक भोगल यर्थाथक अएना थिक। २०१२ मे “टेक्नलजी” (अनमोल झा) एवं “टीस” (मिथिलेश झा) संग्रह सेहो विहनि कथाक बखारी भरबामे समर्थ बुझना जाइछ। अनमोल जीक १४९ रचनाक संग्रह सनातनी यथार्थ परसैए। ततै मिथिलेश झा जीक ‘टीस’ क ४५ गोट रचना पाठकक मानसिकताकेँ झंकृत करैए। जे कि विहनि कथाक थाती वा धराउ सदृश अनुभव करैए।

१० दि‍सम्बर २०११केँ ‘सगर राति‍ दीप जरय’क ७५म कथा गोष्ठीुक आयोजन पटनामे कएल गेल, ऐ अवसरपर मुन्नाजी द्वारा मैथिलीक पहिल विहनि कथा पोस्टर प्रदर्शनी कएल गेल छल।

ऐ तरहंे विहनि कथा संसारक परिदृश्य पूर्णतः भरल पूरल भऽ गेल अछि। आइ सभ दिन कियो ने कियो स्वाभाविक रूपेँ जुड़ि अपन योगदान दैत एकरा मोकामक ड्योढ़िपर आनि पट खुलबाक प्रतिज्ञामे ठाढ़ देखाइत छथि। मोकाम भेटि गेलै तँ घर पैसैमे समय नै लगतै।

1 comment:

  1. विहनि कथा आ लघु कथाक बिच बड्ड नीक फरिछोंट, सुन्नर आलेख पढि मोन गदगद भए गेल |

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