Sunday, May 6, 2012

उमेश मण्‍डल - कनफेड़सँ मुँहफेड़




बरसपति‍बाबाकेँ एहेन दुख  जि‍नगीमे नै भेल छलनि‍ जेहन आइ भेलनि‍।
जखन हुबगर छलाह तखन परोपट्टाक लोक उचि‍त वक्ता मानि‍ ओझराएलसँ ओझराएल पनचैती करबैत छल। मुदा हुबा घटने एहेन दि‍न देखए पड़लनि‍।

कृष्‍णदेव मधुबनी कोर्टमे कि‍रानीक नोकरी करैत। जे कि‍यो काजे ओइ ऑफि‍स गेल सभ बुझैत जे कृष्‍णदेव केहेन घुसखोर अछि‍। रेलवे टि‍कट जकाँ सभ काजक रेट बनौने। संयोगसँ बरसपति‍बाबा सेहो एक ि‍दन एकटा काजे गेलाह। मुदा बुझि‍ नै सकलथि‍ जे घुस दऽ कऽ काज भेल। भेलनि‍ जे सरकारी फीस लगल हएत।
ऑफि‍ससँ नि‍कलि‍ते एक गोटे पुछि‍ देलकनि‍- “कते घुस लागल।”
“घुस कि‍अए लागत। सरकारी फीस लागल।”
एक्के-दुइये जखन चारि‍-पाँच गोटे कहलकनि‍ तखन मन मानि‍ गेलनि‍ जे फीस नै घुस लागल। मुदा आब उपाए की? कोनो सबूत तँ नै अछि‍। एकटा उपाए फुड़लनि‍। ओ ई जे अखनेसँ बाजब शुरू कऽ देब जे कृष्‍णदेव घुसखोर अछि‍। सएह केलनि‍। खूब बदनाम केलनि‍।

समए मोड़ लेलक। बरसपति‍बाबाक हूबा सेहो कमलनि‍। सौ रूपैयाक बेगरता भेलनि‍। गाममे कृष्‍णदेवक महाजनी चलैत।
बरसपति‍बाबा कृष्‍णदेवकेँ कहलखि‍न- “कि‍सुन, एक साए रूपैयाक बेगरता अछि‍, सम्‍हारि‍ दाए।”
मौका पाबि‍, जहि‍ना बगड़ापर बाझ झपटैत तहि‍ना कृष्‍णदेव ठोकले मुँहेँ उत्तर देलकनि‍- “बाबा, जँ अहाँकेँ बजैऐक छल तँ हमरो पुछि‍ लइतौं। हम लेलि‍ऐ तँ चौरासी परचार केलौं आ डेढ़ लाख लऽ कऽ जे नोकरी भेल, आ तइपर सँ महीना-महीने भरए पड़ैए, से के बाजत?”
कृष्‍णदेवक बात सुनि‍ बरसपति‍बाबा मने-मन वि‍चार करए लगलथि‍। ठीके कनफेड़सँ मुँहफेड़ भऽ गेल।

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