Sunday, May 6, 2012

धोति‍क मान :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


धोतीक मान

जहि‍ना तेहैया बोखार तरे-तर अबि‍तो रहैत आ जेबो करैत रहैत तहि‍ना लाल काकाकेँ तीन दि‍नसँ विचि‍त्र सोग गहि‍ कऽ पकड़ि‍ लेलकनि‍। ओना जखन कोनो काजक अनमेनामे लगि‍ जाइ छथि‍ तखन छोड़ि‍यो दैत छन्‍हि‍। मुदा काज बदलि‍ते पुन: आबि‍ जाइ छन्‍हि‍। मुदा कहबो केकरा करथि‍न, घरेलू सोग छि‍यनि‍। सोगो तेहेन जे जहि‍ना ति‍आरि‍ जालमे माछ फँसि‍ जाइत। ने बंशी जकाँ जे बोरक सुगंधसँ फँसि‍ जान गमबैत आ ने सहतक ठनका जकाँ। मुदा तैयो तँ घाउ लगले छन्‍हि‍।
सोगक दोसरो कारण छन्‍हि‍। ओ ई छन्‍हि‍ जे दुनू परानी -पति‍-पत्नी- क बीच कहि‍यो वैचारि‍क संघर्ष, रक्का-टोकी नै होइत छलन्‍हि‍, जो सद्य: सोझामे देखि‍ पड़ैत छन्‍हि‍।
बात कि‍छु ने बुढ़ि‍या फूसि‍ मुदा सोग तेहेन जे रोगौने टा नै, सोगौने छन्‍हि‍। जइसँ कोनो काज करैमे मने ने लगए दैत छन्‍हि‍।
तीन दि‍न पहि‍ने जखन सढ़ूआरएसँ भरपूरा न्‍योंत एलनि‍ तखनेसँ सोगक आक्रमण भेलनि‍ जे धेनहि‍ छन्‍हि‍। ने छोड़ैत बनै छन्‍हि‍ आ ने पूरैत। साधारण जि‍नगी जीबैक अभ्‍यास तँए पाइ-पाइक हि‍साब जोड़ि‍ समुचि‍त काज करैत चैनसँ चलैत छन्‍हि‍। गति‍ अनुकूल आमद-खर्च रहने भातक उजड़ा आॅकर जकाँ दाँत तर खटखटाइत रहनि‍। ऑकर संग भातो फेकए पड़तनि‍। नजरि‍ उठा कऽ देखथि‍ तँ सोझेमे देखि‍ पड़नि‍ जे भारमे धोतीक खर्च वाह्ययात अछि‍, कि‍एक तँ धोतीक मान तँ ओइ समए सर्व सम्‍मति‍ छल जखन एकाधि‍कार बेपार जकाँ छल, मुदा जइठाम दू सए रूपैयाक धोती लऽ जाएब, तइठाम कि‍यो पहीरि‍नि‍हार नै अछि‍, मांगलि‍क काज छोड़ि‍ धोती म्‍यूजि‍यमक वस्‍तु बनि‍ गेल अछि‍। अपन तँ दू दि‍नक कमाइ दहा जाएत। मुदा पत्नी तँ मानती नै। अपना सीमामे सभ बताह होइए, भलहिं आन सीमामे नाङरि‍ पटपटबए आकि‍ दाँत चि‍आरए। मानबो उचि‍त नहि‍ये। कि‍अए तँ पत्नीक मान तँ परि‍वारमे दादीक छन्‍हि‍। बाबा-दादाक पकि‍या संगी। शुभ काजक शुरूहेमे खट-पट भेने कहीं अंत धरि‍ ने खटपटाइत रहि‍ जाए, तेकर डरो रहनि‍। वि‍चारि‍ लेब जरूरी बूझि‍ लालकाकीकेँ पुछलनि‍-
काल्हि‍ये ने न्‍योंत पूरए जाएब। आइये ने सभ ओरि‍यान-बात कऽ लेब।
लालकाकी- घरक ओरि‍यान ने हम करब, आकि‍ हाटो-बजारक करब।

लालकाकीक चढ़ल तर्क देखि‍ लालकाका दोहरौलखि‍न-
बजारक काज की सभ अछि‍।
आर कि‍छु ने अछि‍। खाली जोड़ भरि‍ धोती आ अंगा आ गमछा कीन लेब।
लालकाकी आढ़ति‍ सुनि‍ लालकाका मने-मन जोड़थि‍ तँ देखि‍ पड़नि‍ जे कि‍यो धोती पहीरि‍नि‍हारे परि‍वारमे नै अछि‍, जखन धोती नै तखन कुर्ता आ गमछा तँ सूखल नून-चूड़ा भेल। कतबो हएत तँ जलखैइये। मुदा बेवस भेल। तैयो पुछलखि‍न-
आब कि‍ कोनो भार-दौर चलै छै जे ई सभ लऽ जाएब?”
लालकाकाकेँ चि‍लहोरि‍ जकाँ झपटैत लालकाकी कहलखि‍न-
चाउर दहीक बदला रूपैया लऽ जाएब मुदा नव वस्‍त्र नै लऽ जाएब से केहेन हएत?”
कहैत नोर ढवढबा गेलनि‍। फटैत छातीक दर्द बाँसक झाँझन जकाँ झनझनाए लगली-
बहि‍न मरमा मरि‍ये गेल, मुदा अंतमे मुँह नै देखि‍ पेलौं। भगवानो तेहेन जे सभटा दुख ओकरे घरमे देलखि‍न। चढ़ल जुआनी दुनू परानी मरल, ढाइ बर्खक मइटुग्‍गर-बपटुग्‍गर बेटाक बि‍आह छि‍ऐ, तेकरा पाँच हाथ वस्‍त्र हम नै देबइ, तँ दुनि‍याँमे के देतइ।

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