Sunday, May 6, 2012

लक्ष्‍मी दास - अपन सन मुँह




नीन टूटि‍ गेल रहए, मुदा वि‍छानपर पड़ले रही आकि‍ मैझला बेटा उठबैत कहलक- “बाबू चि‍तकबरा काकाकेँ खस्‍सी चोरि‍ भऽ गेल।”
पुछलि‍ऐ- “तूँ केना बुझलि‍ही।”
कहलक- “एँह, सौंसे गामक सभ बुझलकै।”
सगरे यएह गप-सप्‍प होइ छै। घटनो आ जि‍गेसोक खि‍यालसँ बि‍दा भेलौं। चोर-मोट सभ सोझेमे।
घटना भेल कते गोटे केसमे फँसल।
शुरूमे जमानत-तमानत करा सभ नि‍चेन भऽ गेलौं।
बीस बर्ख बाद वारंटक संग चौकीदार पहुँच गेल।
बहुत दि‍न भेने केस फड़ि‍यबैक वि‍चार भेल। वि‍चार इहो भेल जे जेकर घटना छि‍ऐ ओ जँ अपन बूझि‍ खर्च करए तँ नीक बात।
अपना सबहक दौड़-बड़हा ओकर खर्च।
चि‍तकबड़ाकेँ पुछल गेल। ठोकल मुँहे बाजल- “हमहीं कहने रहि‍हह।”
अपन सन मुँह लेने चलि‍ एलौं। 

No comments:

Post a Comment