गुदरी बाजारक भीड़ भाड़सँ निकलैत, एकटा दुकानक आँगा टीवीक आबाज सुनि डेग रूकि गेल । टीवीसँ अबैत मात्र ओकर अबाजे सुनाइ द रहल छल । ओकर देह नहि देखा रहल छल मुदा अबाजेसँ ओकरा चिन्हनाइ कतेक आसान छै ।
आइसँ तीस वर्ष पहिने, हमरे संगे संग नमी वर्ग धरि पढ़ै बाली, सुन्दर, चंचल मात्र मूठ्ठी भरि डाँड़ बाली ----
"कि प्रेम इहे छैक की मात्र देहक प्रजनन अंगपर एकाधिकार बना कय राखैमे सफल भेनाइ ।"
@जगदानन्द झा 'मनु'
आइसँ तीस वर्ष पहिने, हमरे संगे संग नमी वर्ग धरि पढ़ै बाली, सुन्दर, चंचल मात्र मूठ्ठी भरि डाँड़ बाली ----
"कि प्रेम इहे छैक की मात्र देहक प्रजनन अंगपर एकाधिकार बना कय राखैमे सफल भेनाइ ।"
@जगदानन्द झा 'मनु'
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